Tuesday 19 September 2017

गजब हो गया!!

गजब हो गया!!


कहाँ प्रभात क्या तुम भी, जिंदगी जी रहे हो तो बस जीते चले जाओ मत सोचो क्या अजब हुआ, या गजब हुआ। होने दो।

सच!!! जानता तो मैं भी हूँ, ये खट्टे मीठे अनुभवों के अलग ही आनंद है, लेकिन ये आंनद ठीक वैसे ही होते जैसे "मयखाने में गुजारे पल" तो अच्छा ही होता। मगर यहां तो सब कुछ वास्तविक है में भी- वो भी, इतना ही नहीं साक्षी हैं वो चारों दिशाओं की हवाएं, वो भूमि से आने वाला जल, वो बारिश, वो पै
रों की रज,हँसी,चेहरा और बहुत कुछ..........किस-किस से कहूंगा कि मेरी मुलाकात किसी परीना/रागिनी/मीरा से कभी हुई ही नहीं।

फिर भी अब जो हाल है, उस हाल में मेरा होना गजब हो गया।

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हाल दिल का अपने बता जो दिया, मेरा उनसे बताना गज़ब हो गया।
मालूम नहीं था इश्क का अंजाम, वो रात का मिलना
गजब हो गया।
कौन खोता है प्यार कौन रोता है, जब उनको मुझसे शिकायत न थी
हर घड़ी करते मुझसे सवाल, इजहार मस्ती में करना गज़ब हो गया।
कितने सवालात कर गई हमसे वो, घड़ी दो घड़ी 
मुलाकात में
सिसकियां इस तरह फिर से भरी कि आंखों का भरना गज़ब हो गया।
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सपनों में ही आती तो, राह चलते अब दिखना उसका गजब हो गया।
हर तरफ देखती हैं आंखे उन्हें, उनका न दिखना क्या गजब हो गया।
न पता हो उन्हें, चाहेंगे उन्हें हरदम, मेरा उनसे बताना गजब हो गया।

-प्रभात
तस्वीर गूगल साभार



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