Tuesday 19 September 2017

हम असल में किसी से कुछ नहीं कहते

 जरा मुझे भी सुनिए, हम नहीं कहते
हम असल में किसी से कुछ नहीं कहते
जिंदगी ने गम दिया तो भी सुकून है
हर कदम पर मजबूरियां है, नहीं कहते
बात हो रही है आपकी सरकार!! हम तो क्या हैं, इंसान.....न....शैतान........न.......तो फिर मेरे रिक्शे पर बैठी साहिबा की ......शब्द भइया...... न.....मैं असल में इज्जतदार कभी रहा ही नहीं। परिश्रम करते करते जिंदगी ने मुझे शाम के खाने के लिए गुटका दिया, वो भी लोकल.....भाड़े से देशी दारू कभी कभार.......और इस हड्डी को मजबूत करने के लिए .........लाल मिर्च वाला खाना, जो काले पानी में पकाया जाता है। ये तो रही खाने की बात और इज्जत की बात।
अब देखने और समझने की बात यह है.....
रात को रहने के लिए फुटपाथ की जगह (जिसे सफेद कुर्ते वाले अक्सर मेरे कर्म का नतीजा करार देते हैं) है....जहाँ से झनझनाते ट्रक की बयार, टायरों की रगड़ और उसमें पिसते आम लोगों की संवेदनाओं के बीच मेरी जिंदगी ।
हां मेरी जिंदगी......
जो असल में है तो दिखने में है तो बहुत बेकार
लेकिन अंदर से बहुत अच्छी भी है....
नींद आ जाती है बिना दवा लिए.....बिना पंखे के......बिना सोफे के .......बिना तकिये के....
बिना घर वाली के........बिना जिंदगी के।
अब पहनावे की बात भी सुन ही लीजिए...
नहीं नहाता ऐसा नहीं है, डेली नहाता हूँ, धूल से पसीने से और कभी कभार खून से ।
लेकिन शाम को अक्सर काली यमुना के किनारे बिन साबुन लिए 5 रुपये देकर शौचालय में जानी की आदत है.....कभी कभार पेनाल्टी के रूप में मेरी आधी कमाई वर्दी को चली जाती है.......गिड़गिड़ाहट में मेरे तन पर पड़े वो फटी कमीज का टुकड़ा भी फटकर रुमाल बन जाता है। दाढ़ी बढ़ जाती है तो पागल की तरह रोड पर चलते हुए मुझे एक रुपये की भीख किसी भक्त से मिल जाती है जो अक्सर चढ़ावे में हजार रुपये से कम मंदिरों में चढाना अपराध समझते है।
तो अब तो समझ गए होंगे मनुष्य के लिए 3 चीजें कौन सी जरूरत की चाहिए....खाना, रहना, पहनना
और ये तीनों ही से वंचित हम मनुष्य नहीं है.....इसलिए हम कुछ नहीं कहते केवल फुटपाथ पर रात को सोते हुए आसमां का एक चक्कर जरूर लगा लेते हैं..
फोटोग्राफी: प्रभात (कूड़े वाली)
फुटपाथ (गूगल)
-प्रभात



गजब हो गया!!

गजब हो गया!!


कहाँ प्रभात क्या तुम भी, जिंदगी जी रहे हो तो बस जीते चले जाओ मत सोचो क्या अजब हुआ, या गजब हुआ। होने दो।

सच!!! जानता तो मैं भी हूँ, ये खट्टे मीठे अनुभवों के अलग ही आनंद है, लेकिन ये आंनद ठीक वैसे ही होते जैसे "मयखाने में गुजारे पल" तो अच्छा ही होता। मगर यहां तो सब कुछ वास्तविक है में भी- वो भी, इतना ही नहीं साक्षी हैं वो चारों दिशाओं की हवाएं, वो भूमि से आने वाला जल, वो बारिश, वो पै
रों की रज,हँसी,चेहरा और बहुत कुछ..........किस-किस से कहूंगा कि मेरी मुलाकात किसी परीना/रागिनी/मीरा से कभी हुई ही नहीं।

फिर भी अब जो हाल है, उस हाल में मेरा होना गजब हो गया।

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हाल दिल का अपने बता जो दिया, मेरा उनसे बताना गज़ब हो गया।
मालूम नहीं था इश्क का अंजाम, वो रात का मिलना
गजब हो गया।
कौन खोता है प्यार कौन रोता है, जब उनको मुझसे शिकायत न थी
हर घड़ी करते मुझसे सवाल, इजहार मस्ती में करना गज़ब हो गया।
कितने सवालात कर गई हमसे वो, घड़ी दो घड़ी 
मुलाकात में
सिसकियां इस तरह फिर से भरी कि आंखों का भरना गज़ब हो गया।
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सपनों में ही आती तो, राह चलते अब दिखना उसका गजब हो गया।
हर तरफ देखती हैं आंखे उन्हें, उनका न दिखना क्या गजब हो गया।
न पता हो उन्हें, चाहेंगे उन्हें हरदम, मेरा उनसे बताना गजब हो गया।

-प्रभात
तस्वीर गूगल साभार



झोपड़पट्टी से निकला....


Monday 4 September 2017

दृष्टिपात पत्रिका में "दर्पण"


अरे भाई गाली देने से पहचान होती है?

अरे भाई गाली देने से पहचान होती है?
बचपन से आज तक किसी को गालियां नहीं दी। किसी को साला तक नहीं कहा। शब्द निकलते ही नहीं मानो। हां बचपन में हम भाई बहन कुत्ता और कुत्ती शब्द का इस्तेमाल जरूर कर लेते थे। गालियां देता नहीं था लेकिन जब किसी के द्वारा मुझे गालियां मिलती थी, तो ग्रेजुएशन तक तो ये हाल था कि सीरियसली लेकर भावुक हो जाता था। कभी-कभी तो चिल्ला देता था। किसी ने हल्का सा डाँटा तो लगता था कि अपराध बिना ही ये डांट क्यों दी गई क्या वह नहीं जानता कि मैं सबसे अलग हूँ। रैगिंग में गालियां देने को कही गईं तो आँसू निकल आए, सब कुछ किया लेकिन गालियां मुँह से निकले नही। इन सबके लिए मेरे घर का आदर्श वाला माहौल और बचपन में पढ़ी नैतिक शिक्षा की कहानियां, बुद्ध की जीवनी आदि जिम्मेवार हैं।
                                                     
                                           

बात ये नहीं है कि मैं गालियां नही देता, बात ये है कि एक लड़का गाली नहीं देता। रोना तो कहा जाता है स्त्रियों के लक्षण हैं और पुरुष तो कभी रोते नही वे कठोर होते हैं। ऐसा अगर होता है तो मेरे जेंडर पर प्रश्नचिह्न लग जाता है। इतना नरम दिल के पुरुष को आप देख के कह देंगे कि कठोर बनिये। जो हूँ उससे बहुत लोगों को एतराज होगा। भाई सिंपल सी बात है लड़का होने का मतलब ये नही कि इमोशन्स उसके पास नही होंगे। किसी में कम होते है तो किसी में ज्यादा। लड़की होने का भी मतलब ये नही कि वह बहुत सॉफ्ट ही होगी वह परिवेश के हिसाब से कम इमोशन्स को धारण कर सकती है।
इन सबके बावजूद ये लॉजिक नहीं समझ आया कि गालियां किसी का व्यक्तित्व तय कैसे करती हैं? आज कल गालियां देने वाले लोग बड़ी सोसाइटी के होने का दावा करते है। गालियां और शराब का बहुत बड़ा लिंक है। और इसमें अगर सेक्स जुड़ जाए तो समझिए कॉकटेल जो बना वह बहुत ही स्टैण्डर्ड क्लास का हुआ। लड़कियां गाली देकर पुरुषों के जैसा बनना चाहती हैं। सिगरेट का नशा करके मानों वे कॉकटेल बना रही हैं स्टैण्डर्ड होने का। आखिर क्या पुरुषों के पहचान गालियों से तय होते हैं, उन चीजों से ही बराबरी करना है आपको भी जिन चीजों में अश्लीलता हो। जो न तो पुरुष का कॉपीराईट हो न ही महिलाओं का । इसका अगर समाजीकरण भी हुआ है तो समाज के सबसे स्टैण्डर्ड क्लास के लोगों द्वारा ही हुआ है, जो अंदर से खोखले ही हैं। जिंदगी में यही समाज के लोग अपनी हैसियत दिखाते है और महिला और पुरुष होने का प्रमाण देते हैं। बात बस इतनी सी है कि गालियां दो, खूब दो लेकिन इसको ग्रहण न करने वाला मनुष्य ज्यादा खुश दिखेगा। चेहरे पर चिड़चिड़ापन उसके नही होगा। गालियां मैं नही लेता और न ही देता हूँ तो क्या अब तक का जीवन मेरा गालियों के बिना अधूरा रहा? बल्कि मैं शब्दों का बाड़ चलाना सीख गया हूँ कि गालियां देने वाले अक्सर माफी मांग लेते है, गालियां न देने से मेरे शब्दकोश में इतनी बढ़ोत्तरी हुई कि जिससे मैं इन स्टैण्डर्ड क्लास के लोगों को कभी भी मात दे सकता हूँ।
इसलिए नारी या पुरुष दोनों को वही लक्षण अपनाने चाहिए जो उनकी पहचान कराये, मगर जो वास्तव में स्टैण्डर्ड क्लास से लगते हो। आदर्श बन कर जीयें और ऐसा ही गुण अपने बच्चों में भी लाएं। गालियाँ कुछ नही बस गंदी मानसिकता को दर्शाती हैं । यह न तो पुरुष का गुण है और न ही महिला का।
-प्रभात
तस्वीर गूगल साभार




तीसरी किताब (साँझा काव्य संग्रह) "कविता अभिराम"

कल मेरी तीसरी किताब (साँझा काव्य संग्रह) "कविता अभिराम" का विमोचन हिंदी भवन में संपन्न हुआ। इसके लिए मैं अयन प्रकाशन के संपादक और पूरे समूह का आभारी हूँ। साथ ही उन सभी रचनाकारों को बधाई देता हूँ, जिनकी रचनाएं इस पुस्तक में शामिल हुई हैं। लीजिये आप भी पढ़िए, मेरी उन रचनाओं को जो इस पुस्तक में शामिल हैं.....
विमोचन के अवसर पर Chanda GuptaPrincy Dureja और Ashutosh Mishra भी शामिल रहे, उनका भी शुक्रिया अदा करता हूं।
इसके पहले कविता अनवरत और काव्य संगम नामक दो पुस्तकों को आपसे रूबरू कराने का अवसर मिला था। ये सभी पुस्तकें इसी वर्ष प्रकाशित हुई हैं।

-प्रभात