Saturday 1 July 2017

जाने किस अंजाम पर पहुँच गया

 बेखबर होकर मंज़िल ढूंढता रहा रात भर, जाने किस अंजाम पर पहुंच गया
याद आने लगी महीनों बीतें दास्तां की, बिछुड़कर प्रेमिका के पास आ गया
किसी दिन मोहब्बत सजती रही होठों पर, गले मिला और बेचैन हो गया
आखों में नमी देखकर चाहत की, धुँधले से नज़ारे और उसमें मैं खो गया
इश्क़ के पैगाम भेजा उन्हें था, शायद दुबारा भेजने की तकल्लुफ न होगी
सुन लिया मोहब्बत के तराने सारे, अलापा बहुत फिर मैं गगन तले सो गया
बेखबर होकर मंज़िल ढूँढता रहा रात भर, जाने किस अंजाम पर पहुँच गया

-प्रभात

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