Wednesday 8 March 2017

तुम्हारी याद

एक तुम्हारी याद रही, एक तुम्हारा प्यार
भूल गया मैं जीवन में सब कुछ पहली बार
उम्मीद नहीं हारा हूँ, मुहब्बत का मारा हूँ
सुनामी में कभी, आस बनकर बह जाता हूँ
कहता तो हूँ, फिर क्यों बचती बातें हर बार
मुझे जब आओ याद, करना चाहूँ पत्र व्यवहार
जितना भी चाहूँ भुलाना तुम्हें, भूल न पाऊं
जाकर कोई लम्हा पास आये, ढूंढ़ न पाऊं
जो चाहूँ करना बात तो, लगता हो गयी हार
कोई करता है प्यार, तो कोई करता नहीं प्यार
तुम खिली कली हो, यूँ ही खिलकर रहना
न आना कभी पास पर दूर से ही मुस्कुराना
हमें न समझों, हमने जान लिया खुद इस बार
क्यों बनती यादें है अधिशेष मिलन की हर बार

-प्रभात

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