सियासत ए वफ़ा में क्या पता कब क्या हो जाए
कभी दंगा, कभी जुमला और कभी दगा हो जाए
कभी दंगा, कभी जुमला और कभी दगा हो जाए
मुहब्बत में थोड़े हलके से सवाल किए जाते है
क्या पता कब किसका किससे जुड़ाव हो जाए
क्या पता कब किसका किससे जुड़ाव हो जाए
कभी चीखो भी तो ऐसे जैसे बदलाव आएगा
संभालो ऐसे कि फिर से वहीं ठहराव हो जाए
संभालो ऐसे कि फिर से वहीं ठहराव हो जाए
कभी वोटों की गिनती हाथों से हो तो ऐसे हो
एक पर्ची तेरे नाम और एक उसके नाम हो जाए
एक पर्ची तेरे नाम और एक उसके नाम हो जाए
कभी लड़ो तो ऐसे की मरहम लगाने को मिले
चाहे कितना भी बड़ा साम्प्रदायिक तनाव हो जाए
चाहे कितना भी बड़ा साम्प्रदायिक तनाव हो जाए
फेसबुक पर लाईक कर एक और दोस्त बनाओ
क्या पता कब कौन कैसे क्यों अनफ्रेंड हो जाए
क्या पता कब कौन कैसे क्यों अनफ्रेंड हो जाए
-प्रभात