Tuesday 31 January 2017

रागिनी तुम पत्थर हो?

रागिनी तुम पत्थर हो?
प्रिय रागिनी
         आज रागिनी अपने आपको संभाल नहीं पा रहा हूँ और मेरी प्यारी रागिनी आज तुम्हे मैं पत्थर बता रहा हूँ। तुम्हारा न तो अपमान कर रहा हूँ न ही तिरस्कार। भला कोई प्रेमी कैसे अपनी प्रेमिका का अपमान कर सकता है और किसी के द्वारा करते हुए देख सकता है।
गूगल आभार 
देखो रागिनी, आज तुम जिस रूप में हो, उसमें तुम्हे पत्थर न कहूँ तो क्या कहूँ? तुम अपने आपको पत्थर नहीं मानोगे। लेकिन क्या ये सही नहीं कि तुम निर्जीव पत्थर की भांति ही हो। मेरे और तुम्हारे संवाद में बस इतना ही तो है मैं कहता हूँ और कहता रहता हूँ। संवाद इसलिए होता रहता है कि तुम कुछ बोलते नहीं लेकिन मैं अपनी सकारात्मक भावनाओं को हमेशा तुम्हारे उत्तर के रूप में ले लेता हूँ । तुम पत्थर ही तो हो कि तुम अपनी भावनाओं का इजहार करते ही नहीं और करते भी हो तो बस वैसे ही कि मैं अपना हाथ गुस्से में आकर तुम पर उठा लेता हूँ और तुम मुझ पर उलटे ही चोट कर देते हो।तुम प्रतिक्रिया देते भी हो तो ऐसी प्रतिक्रिया कि मेरी हिम्मत नहीं होती कि तुमसे दुबारा बात करूँ।
तुम पत्थर हो लेकिन वह पत्थर जिसे मैं पूजता आया हूँ। विश्वास किया हूँ। और उसके बाद भी तुमने मुझे हर विवशता में अपने आप से अलग किया है। मैं तुम्हारी शरण में तब तब गया हूँ जब जब मुझे अंदर से बहुत अकेलापन महसूस हुआ है। ऐसा हुआ भी है कि थोड़ी देर के लिए स्वीकार भी किया परंतु तुमने मुझे अंत में पत्थर ही अपने आप को बता डाला कि बात कितनी भी कर लो पर मैं तो पत्थर हूँ और पत्थर बन कर रहूंगी। क्या फायदा, तुम क्यों पूजते हो?
यह भी सही ही है आखिर जब तुम्हे पूजने वाले लोगों की संख्या दिन प्रतिदिन बढ़ती जाए तो आपकी भक्ति के लिए एक भक्त कम भी हो जाए तो क्या होगा। रागिनी! तुम्हारे साथ भी कुछ ऐसा ही तो नहीं है? लगता है और तुम हमेशा ऐसा दिखाने का प्रयास करती आयी हो।
किसी पत्थर को पूजना और तुम्हारी खुद की महत्ता को न समझना रागिनी ठीक वैसे ही है जैसे एक निर्जीव पत्थर करता आया है। तुम तो एक ऐसी पत्थर के समान हो जो अपने आप में हर तरीके से सम्पूर्ण हो। तुम्हें क्यों ऐसा नहीं लगता कि किसी प्यार को ठुकराना बहुत ही गलत बात है। अगर वह प्रेम पूरी श्रद्धा से की गयी हो। जिंदगी में जो भी होता है वह अच्छा ही होता है। शायद तुम्हारी भी गलती न हो ऐसा भी हो सकता है कि तुम वही निर्जीव पत्थर हो जिसमें कोई भावना न हो, और जो केवल नदी में पानी के बहाव को रोक देता हो। अच्छे अच्छे लोगों को बैठने के लिए जगह देता हो और थोड़ी देर के बाद बिछुड़ जाता हो। लेकिन एक बात सोंचो कि ऐसे बहुत से लोग मिलते है कि वह बहती नदी में पास जाकर पत्थर पर बैठ जाते है और आनंद लेते हुए ऐसा सोंचते है कि पत्थर पर बैठकर कुछ तस्वीरें ही ले लिया जाए। और ऐसा करने के बाद वह पत्थर एक तस्वीर के रूप में उनके पास आ जाती है और वे पुनः दूसरी तस्वीर दूसरे पत्थर पर बैठकर खिचातें है और वे यह भूल जाते है कि वह तस्वीर कभी मैंने उस पत्थर के साथ ली थी। मैंने तो उस पत्थर को दिल में बिठा लिया है। मैं तो उसी एक पत्थर की शरण में दिन रात गुजारना चाहता हूँ। लेकिन इसलिए कि तुम पत्थर हो? ऐसा करने में असमर्थ हूँ ।
कहीं ऐसा तो नहीं कि तुम सच बोल रही हो कि तुम पत्थर हो? और ऐसा करने के लिए विवश मात्र हो। ऐसा बिल्कुल भी नहीं है और तुम पत्थर नहीं हो, तुम्हारे हजार बार भी यह कहने पर कि मैं पत्थर हूँ, ऐसा मानने को तैयार नहीं हूँ। परंतु शायद कभी कभी भक्त भी नाराज हो ही जाता है । जब मर्यादा पुरुषोत्तम राम समुद्र के पास बैठे हुए मार्ग पाने के लिए तपस्या करते रहे और उन्हें भी 3 दिनों बाद कुछ भी हाथ नहीं मिला केवल निराशा । और अंत में उन्हें ब्रह्मास्त्र चलाने के लिए धनुष निकालना ही पड़ा। तो मैं कौन हूँ ? मेरी भी नाराजगी लाजमी है। परंतु मैं धैर्य का सागर भी हूँ, और हर तरीके से दयावान और प्रेमी तो मैं ब्रह्मास्त्र भी चलाऊंगा तो भगवान राम जैसे ही, कि उस दिशा में अहित होगा जहाँ जरुरत होगी और औषधि उगेगी लोगों का कल्याण भी होगा। उससे इस पृथ्वी पर रह रहे किसी भी जीव का अहित नहीं होगा। शायद यही मेरा प्रेम है.
तुम्हारा प्रिय
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प्रभात

२७ जनवरी, १७

Monday 30 January 2017

मेरी प्रिय डायरी,

मेरी प्रिय डायरी,
वो दिन याद है न जब मैं तुम्हें चाँदनी चौक पर मिला था। बहुत नहीं जानता था तुम्हारे बारे में ...बस इतना जानता था कि तुम मोटी हो और साधारण। इसलिए तुम्हें मैंने उठा लिया था। नहीं पता था कि तुम हर वक्त पर मेरा साथ दोगी। तुम तो अच्छे दोस्त की तरह मेरे बिस्तर पर तकिये के पास दुबक कर मेरा इन्तजार करते हो। मैं इतना बुरा हूँ कि तुम्हें हमेशा सबसे बाद में और बुरे वक्त में ही याद करता हूँ।
 -तस्वीर गूगल से साभार

तुमसे छिपाऊं भी क्या। तुम तो जानती ही हो। उस अवसर पर भी तुम्हे नहीं याद किया जब मैं सबसे ज्यादा खुश था। तुमसे संवाद करने की कोशिश भी किया तो बस 1 पंक्ति में समेट दिया। जब बर्फ ही बर्फ थे, वादियां हसीं थी। नैसर्गिक प्यार था। हवाएं चल कर मेरे मन को शीतल कर रही थी। नदी बगल से बह रही थी। चांदनी रात में खुले आसमान तले पत्थर पर बैठकर झरने की आवाज सुन रहा था। ऐसे समय में भी तुम्हें नहीं याद किया। लेकिन तुम जरा भी नाराज नहीं हुए और हर प्रकार की कलम को तुम पकड़ने के लिए महीनों इन्तजार करते हो।
तुमसे तो हर बात भी नहीं बताता लेकिन तुमने कभी मना नहीं किया कि मुझे छोड़ दो। तुम्हें तो लोग हर साल छोड़ देते हूँ लेकिन अभी भी मैं तुम्हें ही पकड़ा हुआ हूँ। पता है अभी तुमसे बहुत बात करना है मुझे...मुझे विश्वास भी है तुम ही एक ऐसी प्रिय दोस्त हो जो मुझे अच्छे से सुन लेते हो, बाकि दोस्त ऐसा नहीं कोई ....जो मुझे सुन सके। दुनिया का सबसे खराब इंसान मैं ही बन जाता हूँ, अगर किसी को अपना समझ चर्चा कर भी लेता हूँ। मैं हर बुरे वक्त में भी सबसे पहले अपने इस दुनिया में मिले हज़ारों दोस्तों के बारे में सोंचता हूँ और कोई ऐसा नही दिखता, जिससे मैं कुछ साँझा कर सकूँ।
बहुत सोंचने पर मेरे कुछ अपने लोग ध्यान आते है, जिन्हें मैं अपने आपको उनकी अमानत समझता हूँ, इसलिए भी उनसे नहीं कुछ कहता कि उन्हें तकलीफ हो जायेगी....और बात तो ये भी है कि मुझे शर्म भी आ जाती है। मैं पितृ भक्ति में खूब विश्वास रखता हूँ इसलिए मैंने हर जगह पिता को अनुसरण किया है। माता से भी छुपा लेता हूँ कुछ न कुछ क्योंकि अपनी अम्मी इस हालात में नहीं होती कि सब कुछ सुन सकें। इन सबके इतर तुम ही अंत में ध्यान आते हो। लेकिन तुमने कभी बुरा नहीं माना।
ये दोस्ती भी तुमसे एकतरफा ही है क्या?? कि अपने स्वार्थ के लिए तुमसे हाथ मिला लेता हूँ और तुम हो कि मुझसे इतना प्यार करते हो कि कभी नहीं समझे कि मैं स्वार्थी हूँ। शायद इसलिए कि तुम्हें तरजीह तो देता हूँ आदि से अंत तक...अब तक। आगे भी तुम ही सुनोगे और सुनाओगे। संवाद जारी रहेगी दोस्त तुमसे....इसलिए कि तुम मेरे अपने हो। और सबसे अच्छी बात कि तुम्हें पकड़कर ऐसा लगता है कि मेरा सर दर्द भी ख़त्म हो गया है, मेरी सोंच खुल जाती है। मेरे आंसुओं से एक नयी रचना का सृजन हो जाता है। एक नयी प्रेरणा जन्म लेती है। हौंसलों को नया आयाम मिल जाता है। इसलिए दोस्त नाराज मत होना....चलो खुद हो भी जाना पर मुझे तो मत ही करना दोस्त......
@प्रभात



मैं और मेरी अम्मी!!

 
मैं और मेरी अम्मी!!

जहाँ माँ की ममता हो, सुखद अहसास होता है
बचपन में, गोदी में खिलखिलाने सा आभास होता है

किसी पत्थर की तरह मुझे तरासा माँ ने खूब है
मैं बिगड़ा भी हूँ अगर तो, उसमें दुलार मिला है

काया हो या अंतर्मन की गाथा, खूब मेल है माँ से
साया हो जैसे आँचल का, जिंदगी बची है माँ से 

भूखे पेट नहीं सोया हूँ माँ के हिस्से की रोटी खाया हूँ
छुपकर देखा था माँ खुश थी, खुद न खा, मुझे सुलाकर 

माँ की नींदे छिन जाती है, मेरी तस्वीर देख कर रोती है
माँ मुझे बुखार है, सुनती है और मेरे लिए भूखे रह लेती है

दुनिया ने जब भी ठुकराया मुझे, माँ की ममता ने संभाल लिया
अनगिनत पल, अपनी इक मुस्कराहट से मेरे आंसू पोंछ लिया

माँ अपनी नजरों में मुझे जीवन की कहानी समझा देती है
न पढ़े लिखे होने पर भी, जीने का सलीका बता देती है

जब भी दूर हुआ हूँ, माँ खुशी खुशी भेजने चली आती है 
थोड़ी दूर आकर मुड़कर देखा हूँ, माँ जोर-जोर से रोती है

कई दिन रात जगी थी बचपन में माँ, मुझे सुलाने की खातिर
मैं झूठे सो जाता था, मेरे सोने के बाद मुस्कुराया करती थी

@प्रभात

यात्रा वृतांत

यात्रा वृतांत
        चलिये दोस्तों आगामी 6 जनवरी को परीक्षा खत्म होते ही कहीं घूम लिया जाए। बहुत ठण्ड है, ऐसी जगह चले जहाँ बर्फ देखने को मिल जाए। खूबसूरत वादियां हो, जहाँ हम सब प्रकृति प्यार में पड़कर कुछ समय के लिए उसी में खो जाए। बहुत बड़ी पहाड़ी हो। जहाँ नदियां पास से होकर बहती हो। अच्छा तो शिमला चल लिया जाए? किसी ने कहा। नहीं डलहौजी चल लिया जाए। दूसरे ने राय दिया। आखिर डलहौजी, धमर्मशाला और खासकर मैक डोनाल्डगंज जाने पर हम 16 लोगों की सहमति बन गयी। जैसे जैसे समय पास आता गया, साथ घूमने जाने वालों की संख्या दिन प्रतिदिन घटती चली गयी जैसे बाढ़ आने के बाद एकाएक उत्साह नजर आता है और धीरे धीरे उसका भयावह रूप समझ आता है। जैसे जैसे दिन बीतते जाते है तो पानी 1 - ,1 फुट कम होता जाता है और 3-4 दिनों बाद बिल्कुल कम हो जाता है, जब पानी थोड़ा बहूत ही बचा होता है तो सब कुछ अस्त व्यस्त सा गन्दा माहौल देखने पर प्रतीत होता है। ठीक वैसे ही स्थिति हमारी 6 तारीख यात्रा पर जाने से पहले 4 तारीख को हो चली थी। अब साथ चलने वाले घुम्मकड़ों की संख्या मात्र देखने में 5 ही बची थी।




       4 तारीख को ही मनाली जाने का प्लान बनता है। देव प्रभाकर जी की कृपा से गाड़ी भी सायं बजे के आसपास जुबली हाल के पास आकर खड़ी हो जाती है। कुल लोग जुबिली हॉल के गेट से जनवरी को प्रस्थान करती है। जय हनुमानजय भोले जैसे जयकारों के साथ गाड़ी आगे बढ़ने लगती है।
दिल्ली से आगे हरियाणा में जाकर एक बार हम सभी रुकते है। पार्टी मूड में सभी सामान खरीदते हुएकोल्ड ड्रिंक्सउसका चखना अर्थात चिप्स के साथ खाते पीते हुए आगे बढ़ते है। अब कार करनाल रोड पर रुकती हैहम सभी उतरते है फोटोग्राफी होती है। मेरेजयदीपआकाश और देव के अतिरिक्त बचे ड्राइवर और अपने अब खास मित्र रिंकूअतिरिक्त साथी राहुल जी से अब बातों ही बातों में बहुत अच्छी दोस्ती हो जाती है। सभी लोगों में कोई भी एक दूसरे के लिए अनजान नहीं रहा। रात्रि का खाना खाते है और आराम से कार में बैठ जाते है। गाड़ी टोल टैक्स से होकर गुजरती हैरात्रि के बज चुके होते है। टोल बूथ पर प्रेस का कार्ड दिखाया जाता हैऔर टोल वाला थोड़े पैसे लेते हुए अपनी गाड़ी को आगे पास कर देता है। अगले टोल आने की तैयारी में देव जी ने डी एस एल आर कैमरा गले में लटका लिया। मैंनेआकाश जी और सभी ने अपनी स्थिति पत्रकारों की तरह बना लिया। प्रेस का कार्ड रिंकू भाई ने संभाल लियाअब शायद उस स्थिति में अपने आपको संभाल लिया थाजैसे कि थोड़े समय पहले गाड़ी चलने से पहले फेसबुक पर तीन फोटो आकाश जी ने डाल रखा थाकैप्शन था..."पत्रकारों की टोली मनाली रवाना होते हुए।"
रात भर रुकते हुएचिप्स खाते हुएदिल्ली के पर्यावरणीय प्रदूषण का धुंआ पीते हुए आगे हरियाणाचंडीगढ़ होते हुए कोल्ड ड्रिंक्स का आनंद लेते हुए हम सभी आगे पहाड़ों की ओर बढ़ चुके थे। कई मौकों पर प्रेस की अपनी गाड़ी रोक कर बेइज्जती करने की कोशिश की गयी परंतु हमारा बाल भी बांका नहीं हुआ। पहाड़ों की ओर आते ही कार में स्पीकर में लगे गाने का आनंद 100 गुना आने लगा था। जीता था जिसके लिए.....पर तो बवाल हो जाता था। कारकार न रहते हुए एक स्पीकर में गाने चलने की वजह सेएक क्लब बन चुका था। हम अनुशासित पत्रकारों का।
पहाड़ों की ओर प्रस्थान करते हुए देव भाई ने अपना क्रांतिकारी स्लोगन पेश कियाक्या....छोड़ना गलत थाहम सब एक साथ बोलते है कि... नहीं । इस पर भी देव भाई को हम सभी का उत्तर हजम नहीं हुआ और कहते हैएक बार और पूछना चाहता हूँ क्या......खैर ये विषय नहीं था। विषय था यात्रा वृतांत का।
....फिर मिलते हैअभी तो मनाली की ओर जा रहे है।

-प्रभात
नोट: ध्यान दीजिए अब तक जो कुछ पढ़ा हैशत प्रतिशत सच्चाई के साथ लिखा गया है। कुछ भी छुपाया नहीं गया है।


इक दिन का इंतजार करूँ तो करूँ कैसे

गूगल साभार 
इक दिन का इंतजार करूँ तो करूँ कैसे
मुहब्बत का फिर से इजहार करूँ तो करूँ कैसे
दिल में बसी है सूरत, इजाजत है कि रख दूँ सामने
लिखावट में कोई कसक है तो दूर करूँ कैसे
कोई धूप नहीं तुम, तुम हो गंभीर छाया
सूरत से है हर कोई खिला है, मुझे भी खिलाया
आँखों में छिपी है काजल की काली
उठूं जब भी देखूं तुम्हारे होठों की लाली
छूने का दिल करें तो छु लूं कैसे
तुम्हारी इक "न" पर अब रुकूँ तो रुकूँ कैसे
मुस्कुराओं जब, तो लगे मरु में कमल खिल गया 
गगन से आया धरा पर सितारा, चहुँ ओर मिल गया
बोलती हो कोयल की तरह, लगे प्रभात हो गया
बोलो जो तुम कुछ भी, लगे सब ठीक तो है
जिंदगी में तुम ही हो, अब कहूँ तो कहूँ कैसे
सब कुछ तुम्हें समर्पण करूँ तो करूँ कैसे
जब भी भीगूँ बारिश में तुम दुबका लेते हो सीने से
तुम्हें सोंचता हूँ जब भी, आ जाते हो सामने से
जताते प्यार ही हो, आसमां पर होकर धरा बताते हो
सांस इत्र की तरह छोड़कर महकाती तो हो
अब खुशबूं इन साँसों की लेकर चलूँ तो चलूँ कैसे
तकिये पर सिर रखके करवटें लूँ तो लूँ कैसे

-प्रभात

कविता अनवरत

          बहुत खुशी की बात है। मेरी पहली काव्य संग्रह किताब "कविता अनवरत" का विमोचन 12 जनवरी, 2017 को प्रगति मैदान में हुआ, जिसमें मेरी भी 3 रचनाएँ शामिल है। मेरे लिए इससे बड़ी बात क्या हो सकती है कि मेरे घनिष्ट दोस्त आकाश, देव प्रभाकर, चन्दा, संजय जी इस पल के साक्षी बने। तस्वीर में कैद करने के लिए अभय आपको शुक्रिया ।
अयन प्रकाशन परिवार का आभार व्यक्त करता हूँ।





                  














Wednesday 11 January 2017

चंद पंक्तियाँ

मेरी आँखों में तेरी इक तस्वीर नजर आये
ये आँखे नम इतनी है पर तूँ साफ़ नजर आये
यही एक बात की उलझन दिन रात सता रही है
मैं जितना दूर हूँ तुमसे तू उतनी करीब नजर आये
कोई इक बात नहीं जो मुझसे दूर हुआ हो अब तक
मंजिल दूर बहुत है लेकिन फासलें कम नजर आये
-
प्रभात

मुझे भी आज गाते हुए देखो

यूँ साँसों को जाते हुए देखो
यूँ रातों की उदासी को देखो
यूँ पहाड़ों से फिसलते हुए देखो
यूँ पंखे से लटकते हुए देखो
मुझे भी आज गाते हुए देखो
सिसकती आँखों में प्यार देखो
फिर उसमें कोई संसार देखो
फिर सामने से आते उसे देखो
फिर किसी और के साथ देखो
अब सीधी ई सी जी ग्राफ देखो
मुझे भी आज गाते हुए देखो
मुलाकाते अधूरी सी अब देखो
उम्मीदें सारी सपनों में देखो
खुद के लिए उसे परेशान देखो
किसी कुएं में जैसे रात देखो
फिर से उन्हें रोते हुए देखो
मुझे भी आज गाते हुए देखो
-प्रभात



कभी ख्वाबों में

कभी ख्वाबों में आ रही हो
कभी बातों में आ रही हो
खूब यादों से सता रही हो
मेरी धड़कन हो तुम
मेरी साँसे हो तुम
अपनी बाहों में लिटा रही हो
मध्यम मध्यम सुला रही हो
चाहत को बयां कर दिया
मैंने सब कुछ समर्पित किया
बेवजह नाराजगी दिखा रही हो
अब मुझे क्यों भुला रही हो
क्यों छोड़कर, चली जाओगी 
मुझे शायर बना जाओगी
मेरी हसरतों को जला रही हो
दीवाना बहुत बना रही हो
कभी ख्वाबों....
-प्रभात



मेरे क़दमों

मेरे क़दमों पर चलने का मौका खो दिया तुमने
तुम्हारे साथ चलने को अब सौ बार सोंचूंगा
तुम्ही से प्यार किया था, तो तुम्हारे राह चला था मैं 
तुम्हारी हर इक आदत को अपना ढाल लिया था मैं
मेरी हर बात को तुमने ऐसे हलके में लिया था
पतंगा जला शमां पर था, मजबूर किया था तुमने
अब इजहार प्यार करने को कभी दिल से न सोंचूंगा....
बड़ी चाहत में तुमको खुद के जैसे भाप लिया था मैंने
शरारत से बचाना, और इससे खुद जिद कर लिया था 
अपनी हर ख्वाहिश को दफनाना ठान लिया था तुमने
नहीं कह कुछ, सागर को भी प्यासा कर दिया तुमने
अब कदम बढ़ाने की आगे किस राह से सोंचूंगा
मेरे क़दमों.....
-प्रभात



कहानी प्रेम की...

कहानी प्रेम की...
अपनी रसोई के दुकान पर मिलने का दिन था। सौरभ के आने का इंतजार था। रात के 7 बज गए थे। ठण्ड का दिन था। डिनर तो साथ ही करना था। बहुत खुश था। उसने कॉल पर अभी अभी बताया था कि अरुण भाई मैं थोड़ा लेट हो गया हूँ आ रहा हूँ, पर आधे घंटे और लगेंगे। इंतज़ार करने की आदत तो थी ही इसलिए अरूण बैठ कर वही इन्तजार करने लगा। उसने सोंचा क्यों न व्हाट्सएप पर ही चैट करके वक्त बिता लिया जाये। इतना सोंचते ही क्षण भर में ही मानसी का कॉल आता है। अरूण कहाँ हो? किसके साथ हो? आज कोई मेसेज भी नहीं न ही कोई कॉल। जल्दी आओ व्हॉट्स एप पर । एक साथ इतने सारे सवाल सुनकर लगा कि जवाब दे देना चाहिए परंतु ठीक है ! इतना कहकर उसने व्हाट्स एप ओपन किया , मानसी के 20 मेसेज पड़े थे। ...और सौरभ के 2 मैसेज ..उसने सौरभ को उसके इस मैसेज का रिप्लाई कर दिया कि आज मैं तुम्हारे रूम पर ही रुकूँगा। सौरभ को रिप्लाई इतना ही लिखा कि हाँ दोस्त रूक जाना, नही भी रुकते तो रोक लेता। आखिर दोस्त से मिलना भी तो बहुत दिनों बाद ही तो हुआ था।
अब मानसी के मैसेज पढता ही कि उतनी देर में... क्या हुआ जैसे 10 मैसेज और मिल गये। अरुण ने कहा अरे रुक जाओ प्रिये। वेट.....!!! ,मानसी ने कहा ...ओके।। अब मैसेज पढ़कर रिप्लाई क्या ही करता ? आज तो उसे मिलना था। मानसी ने सुबह ही उसे मैसेज किया था आज हम मिलकर साथ डिनर करेंगे। पिछले 2 साल की दोस्ती और एक दूसरे को इस तरह से चाहना शायद जरुरत भी था। आज से 2 साल पहले ही सौरभ से भी मुलाकात होगी। सौरभ और मानसी तब एक दूसरे के अच्छे दोस्त थे, इतना ही पता था अरूण को। और तभी ही एक दिन बात ही बात में सौरभ ने, मानसी का नंबर मांगा था और सौरभ ने अपने प्रिय दोस्त अरूण को तुरंत ही नंबर दे दिया था और सबसे पहली बार बात भी सौरभ ने ही कराया था।
मैसेज में सॉरी लिखकर अपना व्हॉट्स ऍप ऑफ कर लिया यह कहते हुए कि मानसी आज सौरभ के साथ हूँ बाद में बात करता हूँ। कुछ समय बीत गए थे। अब अरुण को सामने से सौरभ आते हुए दिखा। मुस्कुराकर गले लगाया और दोनों ही बैठ गए। पानी पीते हुए एक दूसरे से बात चल ही रही थी, कि अचानक ही मानसी का कॉल आ गया। अरूण ने फोन उठाते हुए कहा कि हां मैं बाद में बात करता हूँ दोस्त के साथ ही हूँ। सौरभ ने अरुण से पुछा: अपनी गर्ल फ्रेंड से मिलवाओगे नहीं? अरे क्यों नही सौरभ, कल ही मिलवाता हूँ। सौरभ मुस्कुराया । कुछ यादें कचोट रही थी सौरभ को। क्योंकि सौरभ जिसे प्यार करता था वह लड़की उसे छोड़ गयी थी। कारण उसे आज तक नही पता चला। डिनर करके आने के बाद सौरभ रात भर अपनी चाहत के बारे सोंचता रहा वहीं अरूण अपनी मानसी से लगातार बातें करता रहा। मानसी अरूण से बहुत ज्यादा प्यार करती थी। वह कल भी आ गया जब सौरभ से मानसी को मिलना था नाम और चेहरा दोनों ही नहीं पता था। सौरभ के सामने अरूण जैसे ही मानसी को लेकर आता है। सौरभ पहली नजर में मानसी को देख अपने आपको संभाल नही पा रहा था। फिर भी बीच बीच में हल्की झूठी मुस्कराहट के साथ वह सौरभ और मानसी का साथ दे रहा था। उसे विश्वास नहीं हो रहा था कि उसकी चाहत आज अरूण की गर्ल फ्रेंड बन चुकी है। जल्दी -जल्दी में वहां से निकलने के बाद सौरभ कुछ सोंचता है।अरूण आज अपने साथी को उदास देख पूछ लेता है। सौरभ आज तुम काफी उदास लग रहे हो जबसे मानसी से मिल कर आये। क्या बात है दोस्त? सौरभ अपनी कहानी अब बताता है।.... मानसी से मुझे प्यार था परंतु मानसी मुझे नहीं पसंद करती थी। जब तुमने नंबर माँगा था उसके बाद से ही मानसी मुझसे बात भी करना बंद कर दी थी। आज इस हालात में तुम्हारे साथ मुझे देखा नहीं जा रहा।
इतना सुनते ही अरूण ने कहा, मित्र मैं छोड़ दूंगा मानसी को .. बोलो तुम्हारे लिए और क्या कर सकता हूँ । इतना कहते हुए वह ऊपर आसमान की ओर देखने लगा। पल भर में दबे आँखों में एक साथ पानी के बुलबुले आँसुओं के रूप में सामने आ गए। इसके साथ ही सौरभ की आँखे भी नम हो गयी, दोस्त का इस तरीके का त्याग देखकर उसके विवशता के लिए धन्यवाद तो देना ही था साथ ही साथ उसका अपने प्रेमिका से प्यार का पक्ष लेने में जरा भी संकोच न हुआ। अब सौरभ नम आँखों में ही उसे समझा देता है। दोस्त तुम किसी तरीके से अपने आप को उससे जुदा कर लो। खुद ब खुद तुम। अरूण आखिर मना भी कैसे करता वह दोस्त के लिए अपनी चाहत को छोड़ देना ही उचित समझता था। उसने अगले दिन ही उसने वह सब बोल दिया जो शायद किसी भी सम्बन्ध को बिगाड़ने के लिए काफी ही था। अगले सुबह जब अरूण ने मानसी का कॉल उठाया तो मानसी बोली आज खुश तो बहुत होंगे तुम्हारा दोस्त जो आया है...मानसी मेरी बात सुनो एक बात कहना है...अरूण ने तेजी से 1 सांस में बोलना शुरू किया ही था...और उधर से मानसी को लगा कि वो शायद कुछ और अच्छी अपनी जिंदगी के संबंध में बात करने वाला है.
अरूण ने बहुत ही जोर जोर से बोला ..मानसी सुनों, देखो तुम मेरी जिंदगी के बारे में कुछ भी 1 परसेंट भी नहीं जानती। मुझे जैसा समझती हो वैसा नहीं हूँ मैं। मैंने जो जो बताया था वो सब झूठ बोला था। मुझे तुमसे प्यार नहीं है। न तो पहले कभी करता था और न ही अभी करता हूँ।
मानसी सिसकते हुए शायद अब संभलने की सोंच ही रही थी कि एकाएक जैसे बादल की गर्जन होती है वैसे ही जोर से बोलते हुए आँखों में पानी को दबाये हुए अरूण ने कहा; मानसी तुम्हे क्या लगता है। माफ़ करना पर मैं तुमसे इसलिए कम बात करता हूँ क्योंकि मैं ज्यादातर समय उससे बात करता हूँ जिससे मेरी शादी होने वाली है।
इतना बोलकर अरूण ने एक बात और कहा कि अब तुम मुझे न कॉल करना और न मैं तुम्हे। 
मानसी अब कुछ बोलने लायक तो नहीं रही बस वह सामने से आते हुए अपने पुराने दोस्त सौरभ से पूछ ही बैठी अरे सौरभ ...कुछ बोला तो नहीं। परंतु तब तक सौरभ ही पूछ बैठा कि आँखों में आंसू आज कैसे? क्या बात है बताओ?...
-प्रभात