Thursday 28 April 2016

तुम ही निरंतर साथ थे

कह गये क्योंकि शब्दों की कमीं न थी तुम्हारे पास
कभी मुसकरा दिए व कुछ याद छोड़ गये मेरे पास   
-GOOGLE
तुम्हारे लिए शब्द कम हो गये मेरे शब्दकोष में
तुमने अपनत्व का अहसास करा दिया शब्दों में
मेरे लिए मुमकिन था कुछ कह पाना तुमसे
वह क्षण शून्य था पर मुझे उम्मीद था तुमसे
कुछ मज़ाक का अंदाज़, कुछ शरारत
कुछ रिश्तों का जुड़ाव , कुछ स्मृतियाँ
और बहुत कुछ तुम्हे मुझसे भी
इसलिए तुम कहीं रुके और मैं चल दिया
अंततः तुम कभी चले और मैं रुक गया
एक प्रकाश की खोज में, थोड़े उत्साह से
तनिक भर खुशी के लिए, थोड़े विश्वास से  
और वो सब जो मुझे उम्मीद था केवल तुम से
क्योंकि तुम्हारा अंदाज़ मेरे जीवन का अहसास था
यह अहसास जो ज़िन्दगी के उन क्षणों के लिए था
जब मेरे लिए उन दिनों उतार चढ़ाव के दिन थे
दिन प्रतिदिन की हलचल के ख़बरों के दिन थे
मेरे लिए शोक के दिन थे तो कभी उदास के थे
इन सबके बावजूद तुम और तुम ही निरंतर साथ थे
मेरी ‘चुप्पी’ के बावजूद तुम हर पल ख्वाबों के साथ थे
और तभी मैं उबरा और निकाल पाया अपने बीते दिन
बिना किसी झुकाव के, बिना किसी रुकावट के
झुका भी तो तुमसे ही, रुका भी तो तुम्हारे लिए
देखता रहा, इंतज़ार करता रहा हर उस मिलन की
और तुम ने अपनी ज़िन्दगी के उन पलों को मिलाया
मुझसे कुछ अपने आप से भी मेरे लिए
इन सबके लिए और भविष्य के लिए भी
साभार, शुक्रिया तहे दिल से बारम्बार  
-प्रभात  


  

Tuesday 26 April 2016

कौन हो माई लार्ड! किस- किसका दबाव है

ये सही है न्याय में व्यवधान आ गया है
ये सही है न्याय में पुरस्कार आ गया है
ये सही है न्याय में दलाल आ गया है
ये सही है न्याय में अभिमान आ गया है


कौन हो माई लार्ड! किस- किसका दबाव है
जनता का दबाव है या सरकार का दबाव है
गरीबी का दबाव है या पैसे का दबाव है
केस का दबाव है या ज्ञान का अभाव है
रिश्वत का अभाव है या छुट्टी का अभाव है
जीवन लेने का अभाव है या देने का अभाव है
क्या कोई फरियाद है या सब व्यवसाय है

टपकते आंसुओं ने किसका दर्द धोया
किसी गरीब का धोया या भुखमरी पर रोया
कब्जाई जमीन पर रोया या किसी मौत पर रोया
किसी शरीफ इंसान पर रोया या किसी जान पर भिगोया
श्रमिकों के दिलों को भिगोया या बलात् श्रम देख रोया
नारियों के अपमान पर रोया या शोषितों पर रोया
फैले अन्धकार पर रोया या गलत व्यवहार पर रोया

ये सही है न्याय मिलने में देरी हो रही है
पर क्या देर है तो अंधेर नहीं?
ये सही फैसले सैकड़ो एक साथ लिए जा रहे है
पर क्या दोषियों और बेकसूरों में फर्क है?
एक ही प्रोटोकॉल से केस सुने जा रहे है
पर क्या वो प्रोटोकॉल व्यवहार में संभव है ?
ये सही है वकीलों को अच्छे से सुना जाता है
पर क्या गरीब व अमीर के वकीलों को एक जैसा?
ये सही है आप मामलों का संज्ञान लेते है
पर क्या अँधेरे में टीवी के दूर भी?

ये सही है आप पर दबाव होता है
पर क्या गुनाहगार मुवक्किल से ज्यादा
जहाँ साबित करना हो कि मैं गुनाहगार हूँ
जहाँ बिक गयी हो आप से पहले पुलिस तंत्र
जहाँ हो गया हो पूरा मामला रिश्वत पर भ्रष्ट
जहाँ पर आरोप लगे हो फर्जी दस्तावेजों पर
और आपके उस सैकड़ों निपटाएँ गए केसों में से एक यह भी हो
बेल का केस मुलजिमों जैसे सुलूक की गयी और जेल में पड़ा हो
और इस बेल के बाद तारीख पर तारीख
और फैसले हमारी पीढ़ियों ने भी न देखे हो...........
ये सही है आप पर दबाव होता है
पर क्या रेपिस्ट, घोटालेबाजी किसी दोषी को सजा न सुनाने से ज्यादा
पहले मामला लटकाया जाना
और धीरे धीरे मिलीभगत हो जाना
अच्छे वकील के बहस करने से
और राजनीतिक दबाव से बाद में बेक़सूर बताये जाने से ज्यादा

कौन  हो माई लार्ड! अगर न्याय में संविधान अंतिम सत्य है
अगर न्याय में पुनराविलोकन का कोई अर्थ है  
अगर न्याय में भाषाई धर्म का भेद भाव नहीं
अगर न्याय में पैसा और शक्ति का अर्थ नहीं   
अगर लिंग और जातियों में असमानता नहीं
तो फिर इन आंसुओं को जो बहाया है मंच पर
एसी के अन्दर, नेताओं और सरकारों के सामने
किसके लिए? क्या अपने लिए?
या जेल में सड़ते बेकसूरों के लिए
अधिकारों से वंचितों के जीवन के लिए

इस देश के लिए? या फिर अपने लिए .....?   
-प्रभात    

Wednesday 6 April 2016

मेरी चाहत मेरे से दूर हो पर

मेरी चाहत मेरे से दूर हो पर फिर भी तुमसे तुम में ही मिल जाने को
जब धूप में तुम्हारी छाया हो
इन आँखों में तुम्हारी काया हो
दिल में एक दीदार समाया हो
हवाओं में जैसे कुछ गुनगुनाया हो
फिर मेरी मोहब्बत क्यों ढूंढती हो इन आँखों को आँखों के सामने
कहती हो क्यों पास आकर मेरे हर सपनों में समां जाने को
मेरी चाहत मेरे से दूर हो पर फिर भी तुमसे तुम में ही मिल जाने को

जब तुम्हे देखकर हमेशा मेरा अक्स खिल गया हो
तुम्हारी बातों में मेरी बातों का मिलन हो गया हो
अधूरा सपना तुम्हे पाकर एक कहानी बन गया हो
मुसकराकर देखने से मुझे मेरा मन बहल गया हो
फिर मेरी मोहब्बत क्यों करती हो इंतज़ार रोजाना उसी रास्ते का
कहती हो क्यों देखकर मुसकराने को हर रोज मेरे आईनें को
मेरी चाहत मेरे से दूर हो पर फिर भी तुमसे तुम में ही मिल जाने को

जब तुम्हे मेरी कमी का एहसास हो गया हो
हरदम मेरी फ़िक्र करने का ज्ञान हो गया हो
हर रास्ते में तुम्हारा और मेरा साथ हो गया हो
मंजिल के इंतज़ार का दिन समाप्त हो गया हो
फिर मेरी मोहब्बत क्यों एहसास कराती हो मुझे अपनी कमी का
कहती हो क्यों नहीं इन यादों को भी अपने साथ मुझसे मिला जाने को
मेरी चाहत मेरे से दूर हो पर फिर भी तुमसे तुम में ही मिल जाने को

-प्रभात
(इमेज केवल काल्पनिक और सजावट के तौर पर गूगल से लेकर लगाई गयी है!)