Sunday 28 February 2016

यादों में खोया हुआ हूँ

 मैला हुआ वो पानी दरिया का, सूरज भी जैसे रुका हुआ है

जाड़ा, गर्मी बरसात लिए अब मौसम कितना बदला हुआ है

घास पर फ़ैली ओंस की बूंदों में चिमनी का रंग घुला हुआ है

वर्षों हो गये सुने कोयल की कूकू को कैसे कहाँ छिपा हुआ है

न जाने किस किस मौसम की अगुवाई में बादल चला हुआ है

-गूगल 










बालक हूँ इतना नादान कौवा और कोयल न समझूँ

रात की रोशनी में अब चांदनी और अधियारी रात न बूझूं

एकादशी की रात अनोखी गन्ने की कीमत न समझूँ

सूंप दीवारों पर टंगी हुयी मंकड़ी के जालों में उलझू

मेढ़क की आवाज वाले खिलौने बाजारों में भी नहीं सुनूँ

बचपन ही अच्छा था तब का अब मैं कहाँ चला हुआ हूँ

लौटा दो वो प्यारे बचपन के खेल यादों में खोया हुआ हूँ 

-प्रभात 

Friday 19 February 2016

भीड़ बुलाकर जलियावाला बाग़ बनाते भी देखेंगे

अपने देश को हम झुकते नहीं देखेंगे
कुर्बानी शहीदों की हम खोते नहीं देखेंगे
जिसने कहा है हमें देशद्रोही
उसे देशवासी नहीं उसे राजनेता ही समझेंगे
इनको कहाँ आता है राष्ट्रवाद की परिभाषा
इन्हें है अपना राज पाने को लेकर आशा
जहाँ देखेंगे वहां भारत-पाक बनाते देखेंगे
इस भीड़ में सांडर्स की पहचान भी नहीं होगी
किसी अधिकारी की अपनी जुबान भी नहीं होगी
मोहल्ले में एक दिन तिरंगा लगाते हुए भी देखेंगे  
भीड़ बुलाकर जलियावाला बाग़ बनाते भी देखेंगे
कौन सा तूफ़ान किसी निर्धन को मौत नहीं देता
आसुंओं को गरीब नेता सूखने क्यों नहीं देता
खरीदनें और बांटने में हम पर ही सब्सिडी दिखायेंगे
इंसान को इंसानियत से मानव बम बनाते देखेंगे
मौत के रहस्य को मौत से सुलझाते देखेंगे   
देश को सुधारने की आवाज उठाने वालों से पूछो
सीमा पर डटे मौत के पास जाने वालों से पूछो
तिरंगा ही उठकर जब शव के पास आता है
उसे प्यार देने वाली गुजरती हवा से पूछो
देश को भी उसके सामने झुकते देखेंगे
हर माँ की आँखों के आसूं उस संतान के लिए होंगे
-प्रभात  

Tuesday 2 February 2016

कविता से अपना जीवन मांगू


मैं अपराधी बन कर कविता से अपना जीवन मांगू

और बनवासी जीवन की विदाई का बहता दो आँसू मांगू

किसकी चाह नहीं होती जीवन हँसकर जीने की

सुख दुःख को बाँट कर कुछ रूखा खाने पीने की

हर मौसम में चिंतन होता है कि कैसे करुणा ख़त्म करूँ

अपना भविष्य बनाकर घर में घर को कैसे निर्मल करूँ

तभी मेरी बगिया में आग लगा दी जाती है

और फूलों को हँसना भी दुर्लभ हो जाता है

अबकी बार इन्ही चिंतन में मैंने एक पीर लिखा है

ममता की आड़ में बैठा इंसानी प्रीत लिखा है

बचा है जीवन का जो शेष रहस्य सब कुछ बतला कर जाऊंगा

सूखे बैठे वृक्षों के बचपन को हरा भरा कर जाऊंगा

आज सच्चाई लिये मेरे शब्दों की सीमा नहीं खिंची होगी

मेरे अन्दर की पीड़ा से प्रतिभा मेरी जाग रही होगी

मेरे जीवन की रेखा ऐसी बिगड़ी जैसे मंजिल पर आग लगी हो

ऊपर जाकर नीचे आया जैसे सीढ़ी खेल खेल रहा हो

अब नीचे आकर जब मन से कारण पर चिंतन करता हूँ

आजादी के पैमानों पर भारत का जब वर्णन करता हूँ

पाता हूँ घोर निराशा, अपनी सुध तब मैं खो देता हूँ

आसमान के तारों को गिनता भविष्य कहीं छोड़ देता हूँ

भगत सिंह, आजाद की कुर्बानी पर शर्मसार हो जाता हूँ

जब दुनिया में आकर निरपराध अपराधी बन जाता हूँ



जब कहा गया संविधान गीता सा सुन्दर ग्रन्थ है तब  

मौलिक अधिकारों से जकड़ा संसद पर वाणी क्यों क्रुद्ध है

नेता जी संसद में आकर एसी में विश्राम करें

आधी आबादी का खाना पहरेदारी में खर्च करें

गरीब का बेटा जब चाय बेचकर गद्दी पा जाता है

ऐसों आराम से घूमकर कईयों के जेब भरता है

सुनने वालों को बेतुका बयां सा दिखता है

हकीकत है जिन्दगी राजपथ से अलग किनारे रेलवे पर दिखता है

कितनों का पेट लात घूसों से भरता है

और बाप बच्चा गरीबी से दम तोड़ देता है

अधिकार दिलाने वाले जब चुनकर वादें लेकर आते है

और बाद में वादों वाले पर्चे गायब हो जाते है

चुनावी दौर का चेहरा अभिमानी और दमनकारी हो जाता है

और भीख मांगने पर जनता को कुचल दिया जाता है

कुछ कहने की साहस लेकर इंडिया गेट पर जाता हूँ

तभी पुलिस के डंडों से पिट कर आ जाता हूँ

और क़ानून की मर्यादा में अपराधी बन जाता हूँ



बापू का इतिहास दुहराने वालों का जीवन मंगल है

किसने कहा ऐसा सत्याग्रह ही अमंगल है  

हकीकत में मैं रोया हूँ बापू की राहों पर चल कर आया हूँ

अंग्रेजों के जाने पर भी जब बापू को आजमाया हूँ  

बदले में जेल का रास्ता दिखाया और पागल खुद को पाया हूँ

अधिकारों के लिए लड़ा और प्रेम का पाठ पढाया

शिष्य हमारे बने रहे और बाद में तीर चलाया

मौका पाते लूट लिया मेरे घर के तहखानों को

मुंह से रोटी छीन लिया और मेरे मेहनत को  

आज अब मैं शुरू हुआ हूँ अंत नहीं कर पाउँगा

मरकर सच्चाई को जिन्दा देश के सामने लाऊंगा

संसद का अब तक देखा ऐसा इतिहास रहा है

नीति बनाने वालों का आपराधिक इतिहास रहा है

धन से लेकर काला धन गद्दी से ही बन जाता है

और हकीकत में जनता का पैसा फिजूल कहीं लग जाता है

सदनों में नेता बैठे कुर्सी कुर्सी जब खेल रहे है होते

हम भूखों के बच्चे भी जीवन में बारूद झेल रहे होते

अंधेर नगरी बन कर अब सोने का यह देश रहा है

न्याय का अदालत अब पहले से भी काफी घूसखोर रहा है

कहीं से न्याय अगर मिलती वही अदालत समझा जाता

तो दुनिया में केसों पर विजय मानव धर्म का हो जाता

मैंने बस अपराध किया है क्योंकि सच का साथ दिया है

जनमानस में फ़ैली कुरीती पर प्रथम प्रहार किया है

अगर प्रशासन की कमियों को मैंने उजागर किया

सूचना अधिकार से मैंने भ्रष्टाचार पर सवाल किया

क्योंकि अपने अरमानों से चोरों पर सवाल उठाया हूँ
इसलिए प्रशासन से शासन तक आतंकवादी कहलाया हूँ 

मैंने बस अपराध किया है क्योंकि भगत का साथ दिया है

मैंने बस अपराध किया है क्योंकि गाँव देखकर आया हूँ

नदियों के बहते गंदे पानी को गन्दा कह आया हूँ

सवाल उठाने का साहस पूजीपतियों पर जब करता हूँ

अंधे कानूनों का मैप खींच फेसबुक पर लाता हूँ

अगले दिन ही आईटी एक्ट के काननों से घिर जाता हूँ

और मैं निरपराध ही अपराधी बन जाता हूँ 



तीसरा खम्भा बना हुआ मीडिया भी पैसों का इतना दीवाना है

घूसखोरी और गरीबी का दृश्य नहीं खेल जगत का तारा है

जो आधा भड़काऊं नारा देकर दंगा करवा देता हो

वो मीडिया नहीं अपराधी है चाहे आस्था दिखा देता हो

समाज के बुराईयों को दिखाने वाला आज कहा अब टीवी है

सास बहु पर नाम चलाने वाला और अधनंगी बीवी है

फिल्मों में अपराध बढ़ाता जो भी इसका कारीगर है

तिहाड़ जेल से खबर मिली है वही पैरोल पर बाहर है

कहा गयी विधि की समता की और क़ानून का शासन

चौराहों पर लेकर बैठा है कुछ पूंजीवादी दुह्शासन

कहाँ हो पाता है जेलों में सड़ते बेकसूरों पर न्याय का पुन्राविलोकन

उससे पहले उस माँ के बेटे का हो जाता है फांसी से बंधन

आज गलत जजमेंट दिए बैठे है कितने न्यायाधीश अभी

बेकसूरी पर प्रताड़ना सह रहे निरपराध अपराधी अभी

आज होंश में नहीं हूँ जब से सुना सैकड़ों खौफ हूँ

गरीबी के आलम में बंधुआ बना कोर्ट में कैद हूँ

आज सच्ची आस्था से गवाह नहीं मिल सकते

ईश्वर की शपथ लेकर ईश्वर को जवाब नहीं दे सकते

सारी फाईलों का निसतारण कौन आज करता है

बस बाबुओं का ही अभी पेट इसी से भरता है

नहीं यह कहना मुझ जैसे को देश के लिए गद्दारी होगी

आज जो जज, वकील से लेकर मौकिल तक का लाबी है

यही असली गुनाहगार और हत्या का भागी है

गलत फैसले सुनाने वाले का कागज में बयानबाजी है

तारीखों को सुनाकर आज न्याय कहा मिल रहा है

आज जनता पूछ रही है हकीकत में अपराधी कहाँ है

ढूढ़ कर ले आओ फांसी पर लटकाओ या खुद लटक जाओ   

नहीं तो छोड़ दो गुनाहगारों को फैसला हमें ही करना है

आतंक से ही सही पैतरा तय किसी को भी करना है

देश के लिए इतनी सी आवाज लिए मैं मन से बोल रहा हूँ

मैं निरपराध अपराधी हूँ अपने अपराधों को तोल रहा हूँ



गाँव पंचायत में आज लगी है ईटें कागज पर

मनरेगा से लेकर सारे विकास होते है किसी एक घर पर

कौन प्रधान बना हुआ है बिन बोतल दारु के

कौन अधिकारी दिया हुआ है कुछ बिन रिश्वत पानी के

किसने प्रमाण पत्र जमा किया है बिना शोर- शिफारिश के  

जो भी ऐसा हो उस चन्दन की डाली को नमन हो

भारत माता के तुम सपूत हो और हौसलों का दौर हो

उसी हौसलों से ही आज मैं सारे देश को ललकार रहा हूँ

आज बना निरपराध अपराधी सोते राष्ट्र से कुछ मांग रहा हूँ

जागो अब भी देर नहीं इसी गाँव के पंचायत से

चले जाओ पीएम की कुर्सी तक अपने गिरते पंखो से

और दिखा दो उम्मीद की किरणें इस फैले अंधियारे में

जब मन से आशा छोड़ चुको तुमको मेरा गीत मिले

हम जैसों के जीवन में हरदम कुछ जीत मिले

और तभी तो अंगार बरसेंगी इन्ही जुड़ते जज्बातों से

मेरे मन के अंतर्मन से फैले जीवन के आंगन तक

आज इन्ही बातों को कहकर हंगामी सदन को बदनाम किया हूँ

मैं निरपराध अपराधी हूँ केवल संसद का सम्मान किया हूँ        


-प्रभात