Monday 8 June 2015

मगर मेरे हौंसले मेरे जाने के बाद की सोंच लिए बैठे है..

है राह नही आसान किसी इंसान के
मगर स्वप्न किसी पंक्षी के पर लिए बैठे है

रेतीली,  कटीली और पथरीली राहों पर
कुछ मधुमक्खियाँ फूलों का रस लिए बैठे है

अनजानी दुर्गम पहाड़ियां कभी खिसकते है
मगर मेरी सफ़र में ये नदियों में रास्ता बना बैठे है

प्यार-मुहब्बत से दूर दिनों में बस लगता है
कुछ झीलें पानी नमकीन लिए बैठे है  

विस्तार हुआ है अब तक बहुत ज़िंदगी का
मगर मेरे हौंसले मेरे जाने के बाद की सोंच लिए बैठे है ......


-प्रभात 

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