Friday 27 February 2015

वो लड़की.....

                      वो लड़की.....

                      
                       



                        


                         [1]

जब जून की गर्म हवाएं हर ओर चल रही थी
जब सूरज की रोशनी से लताएं मुरझा रही थी
जब धरती की तपन से गली के कुत्ते हाफ रहे थे
जब बालू के टीले मोतियों से खिल रहे थे
तब पेड़ के नीचे बैठी वो लड़की कुछ कह रही थी 

जब गोरे से बदन में कुछ नमीं दिख रही थी
जब प्यार से वो मुझे पास आने को कह रही थी
जब रिश्ते निभाने के लिए कुछ बाते करनी थी
जब गर्म हवा में उसे कुछ वादे करनी थी
तब मैं नहीं समझ पाया क्योंकि उस जमानें में नहीं था 

जब अल्फाजों के कद्र करने की बात नहीं थी  
जब इस मौसम में जिन्दगी जी लेने की बात नहीं थी
उस लड़की से प्यार होने का कोई सवाल नहीं था
अब समझाने को तो गर्म हवाएं आती हैं  
मेरे मालिक, तब मेरे शब्दों की सीमाएं होती थी.....


                         [2]

जब रात को तकिये को भिगोकर सो रहा था
जब करवटों के ओट में मैं जग रहा था
जब अँधेरे में मच्छरों का संगीत चल रहा था
जब बिजली के जाने का भय सता रहा था
तब गम के खजाने से गीत लिख रहा था 

जब बदन के पसीने से उर भींग रहा था
जब आँखों से फोन का खाली स्क्रीन दिख रहा था
जब मौन थे सब मैं संगीत सुन रहा था
घड़ी की टिक-टिक चलने से परिचित मैं हो रहा था
तब प्रेम पत्र लिखा था अब पीर लिख रहा था 

जब जुगनूं की प्रकाश में हम दिख रहे थे
वो लड़की जग रही थी और सब सो रहे थे
लालटेन की आड़ में एक गीत लिख रहा था
अब मेरे सोने के वक्त में सब बाधाएं आती है
अधूरे सपने में तब उस लड़की की निगाहें होती थी.....

                        [3]

जब शांत वातावरण में चिड़ियाँ गा रही थी
मेरी तरफ अपने नयनों से इशारा कर रहीं थी
मानों मेरे तनहा होने का उन्हें मालूम हो चला था
क्योंकि पिछले कुछ दिनों से अकेला आ रहा था
तब मेरे अकेलेपन में मुझे सहारा दें रहीं थी 

मानों उसी पेड़ के छाँव में हाल चाल ले रही थी
जब पीने के लिए पानी मैं उस जगह आ रहा था
जब यादों के लिए पिछली जगह जाने को सोंच रहा था
जब सूखे डाल पर बैठ ये सब होता देख रहीं थी
तब मानों उन चिड़ियों को पहले से सब कुछ पता था 

जब सामने वाले मटके की ओर इशारा कर रहीं थी
मानों मेरे प्यास को बुझाने का कयास कर रहीं थी
मैं प्रेम से पीकर उस मटके का पानी जा रहा था
अब मुझे सोते जागते वो लड़की मिल जाती है  
उन चिड़ियों की तरफ से तब धन्यवाद मिल रहा था.....

                                                       -“प्रभात” 

विनती!

                            विनती










नवजीवन वाली खुशियाँ लेकर नया सुप्रभात हो  
आज और कल की बातों को भूल नया विहान हो  1।  

गरिमामय जिन्दगी की फिर नयी शुरुआत हो  
नयी चांदनी और तारों के साथ का शाम हो ।2। 
   
फिर से चिड़ियों का बसेरा मेरे आँगन के साथ हो  
फूलों से घिरा मकान और अच्छे लोगों की बात हो 3। 

साथ खेलनें वालों का जीवन भर साथ हो  
कटुता और कपटता वाली भाषा का सदा नाश हो  4।  

झूमें गायें और संग में खाने का इंतजाम हो  
आसमान में चिड़ियों की तरह उड़ने की बात हो  5।  

धर्म और प्रेम के बंधन में बंधी न ये नाव हो  
डूबते नाव को किनारे पर लाने का कुछ ज्ञान हो  6।   
                                                                 -“प्रभात”


Wednesday 25 February 2015

प्रेम पर चर्चा!

है सुकून कहाँ जीवन में, हर ओर प्रेम का घोटाला है,
राम नाम के चर्चा वाला यह मंदिर कितना काला है 1।

फूलों से सजा हुआ है, यह मानुष प्रेम का माला है,
हुंकार भरे यह रथ का राजा, आगे युद्ध का भाला है 2।

प्रेम के वशीभूत हुआ, प्रेमी कैसा निर्दयी वाला है,
प्रेमिका के चंचल मुखड़े पर मैला अम्ल डाला है 3।

ताजमहल सी बनी इमारत प्रेम का घना एक जाला है,
नेपथ्य में जाकर देखा, बहा हुआ खून का नाला है 4।

धर्म बताते वही सारे, जिनसे नहीं प्रेम का पाला है,
नरसंहारी बन राह दिखाता यह क्रूर मन का जाला है 5।

प्रतिबिम्ब बना कर लगाया हुआ, यह जो दुशाला है,
पीछे बैठे ढोंगी बाबा का जमकर किया घोटाला है 6।

प्रेम नाम का जला कर बैठा, कितना सुन्दर ज्वाला है,
पास बैठकर देखो तो यह दुर्गंधयुक्त और विष वाला है 7।
     
कहने को तो यह पर्वत पर, घी के दिए का उजाला है,
दम तोड़ने वाले उजाले की परिभाषा बनने वाला है 8।

जहाँ एक ओर सुरीली आवाज में, उसका लाला है,
उसी माँ का प्रेम, बनी बहू की देह का ज्वाला है 9।

गऊ माँ के मूत्र और गोबर की पूजा करने वाला है,
उसी माँ पर बढ़ते अत्याचारों का बोलबाला है 10।

सुन्दर रूप वालों की दुनिया, भाग्य बनाने वाला है,
ऐसे भाग्य विधाताओं से भेदभाव आने वाला है 11।

मंदिर-मस्जिद में चढ़ने वाला चीज, कैसा गुणवाला है,
खाकर मोटे होने वाले धर्मगुरुओं का यह प्याला है 12।

यह समाज बना, पुरुषों वाला कितना मन चला है,
नारी विकास के संकीर्ण विचारों में कुछ काला है 13।
  
ये आत्ममंथन और दूरदर्शी सोंचों, का एक धर्मशाला है,
हर भावना की कद्र कर लिखा प्रेम का ही एक ज्वाला है 14।

यह धर्म पाखंडी और लूटने वालों की चौहद्दी पर ताला है,
“प्रभात” नाम के बोल पर जपने वाली एक माला है  15।
                                                                            -प्रभात

Tuesday 24 February 2015

मगर मैं हारा नहीं।

मैंने जो लिखा था कुछ भी सही नहीं
मगर मैं हारा नहीं








विश्वास मेरा मुझको जो बल देता कहीं
गलत को सही कराता वहीं
लड़खड़ा कर अगर मैं गिर जाता कहीं 
बेसहारा होकर चल बसता वहीं
मुझमें जो विश्वास है हौंसले बढाता नहीं
मगर मैं हारा नहीं

टूट कर शाखाओं से पत्ते गिर रहे कहीं
मैं भार ढोता कहीं
हो जाता अपराधमय मैं भयग्रस्त वहीं
छोड़ जाती मुझे आपदा में वहीं  
फिर लिखने की कोशिश करता टूट जाता कहीं
मुझे मिलाता कोई नहीं  
फिर भी अब तक किसी को कुछ बताया नहीं
मगर मैं हारा नहीं

मैं निकल गया हूँ काटों के बीच से सही
रास्ते में रुका नहीं
चलकर छू लूँगा अपने मंजिल की दीवार कहीं
मैं रुकुंगा तब कहीं
हौंसले बढ़ाने वाले बढ़ाते रहे या कभी नहीं
मैं चलूँगा सही
आशा है जल्दी लिखूंगा सही पर अभी नहीं
मगर मैं हारा नहीं

                                                   -“प्रभात” 

Monday 23 February 2015

बस्ती निवासी वालों का पैगाम सुनाने आया हूँ

बस्ती के एक कोने से आवाज लगाने आया हूँ
बस्ती निवासी वालों का पैगाम सुनाने आया हूँ
मेरे घर का एक कोना 











अब तक सींचे गए है जितने खेतों की क्यारियां
उतने ही फूल खिले हैं, संग खेतों की बालियाँ
चुनचुन कर अवधी भाषा से प्यार जगाने आया हूँ
बस्ती निवासी वालों का पैगाम सुनाने आया हूँ

कल कल कर बहती हैं कुवानों, सरयू की नदियाँ
कहीं पे टर्र की आवाज है, तो कहीं पर मछलियाँ
मनमोहक सुरीली आवाजों का संग्रह ले आया हूँ
बस्ती निवासी वालों का पैगाम सुनाने आया हूँ

प्राचीन मंदिर है, तो यहीं पर मस्जिद की गलियाँ
शुक्ला, सैयद ने लिखा है हिंदी साहित्य की दुनिया
ऐसे ज्ञान के दीपक से, अन्धकार हटाने आया हूँ
बस्ती निवासी वालों का पैगाम सुनाने आया हूँ

एक ओर मगहर कबीर का तो वहीं भदेश्वर मंदिरियाँ
गुरुद्वारा साहिब है यहाँ और गिरिजाघर की रीतियाँ   
प्रसिद्द फल-फूल शोधालय तक का दर्पण ले आया हूँ  
बस्ती निवासी वालों का पैगाम सुनाने आया हूँ

बस्ती-बस्ती  के हर कोने में दिखेंगी खूब गरीबियाँ
वहीं पर कहीं पे मिल जायेंगी गहनों की सुन्दर गुरियाँ
इस अमीरी गरीबी की खाई पे ध्यान दिलाने आया हूँ
बस्ती निवासी वालों का पैगाम सुनाने आया हूँ

कच्ची-कच्ची सड़कों वाली है गावों की दुनियाँ
कटी आबादी वहां की हैं जहाँ झुंडों में हैं बस्तियाँ
इनके प्राचीन परम्पराओं का विस्तार कराने आया हूँ
बस्ती निवासी वालों का पैगाम सुनाने आया हूँ

जड़ी-बूटियाँ लेकर बैठी है पेड़ों की सुन्दर टहनियाँ
 वहीं पे दिखेंगी बंदरों की किस्म किस्म की मदारियाँ
आप झूमेंगे प्रकृति की गोंद में विश्वास दिलाने आया हूँ
बस्ती निवासी वालों का पैगाम सुनाने आया हूँ

बस्ती मेरी पावन जन्मस्थली पर है मेरी अब नजरिया
सपने में है बस्ती को खुशहाल बनाने की सारी बतिया
वैशिष्ठी” के मंडल से जुड़े रहने की बात बताने आया हूँ
बस्ती निवासी वालों का पैगाम सुनाने आया हूँ


                                                                 -“प्रभात”










Wednesday 11 February 2015

प्रेम नाम का दरिया है ऐसा जिसको चाहा है ले डूबा है ।

प्रेम नाम का दरिया है ऐसा, जिसको चाहा है ले डूबा है
कुछ परिणामों ने साथ दिया, कुछ को कर्ज ने ले डूबा है
   
ref.- google









सुन्दर संवरती चट्टान हमारी है, निर्मल मन कह बैठा है
गहरी खंदक को जाकर भी, प्रेम प्रकाश जला बैठा है

भाग्य लिखती है कुछ ऐसा, जिसने चाहा है वो दिया है
कार्य करा मन की जिज्ञासा ने, पूर्ण भाव से भर दिया है

सदा समर्पित प्यार तुम्हारा, जब भी अहसास हुआ है
तब - तब मीरा के प्रेम का, गलियों में उपहास हुआ है

प्रभात कह रहा है, कुछ कहानियां प्रेम पर लिखी जाती है
ये तैरते हुए नाव का अंदाज है, न चाहते हुए भी ले डूबा है      


                                                                                  “-प्रभात” 

Monday 9 February 2015

मानव देख रहा डाली-डाली

मानव देख रहा डाली-डाली
         
                 ( १)
मानव देख रहा डाली-डाली
नयी तनों और कोपलों से जो है खाली
बदसूरत सी बनी वृक्ष की आभा
नीरस हुआ मन तो उठ चले नर-नारी
दृश्य मनोहर ढूँढने को कर रहा है मन
चंपा और चमेली खिल रही है,
पर नहीं है वो सुगंध प्यारी
देख सखी, कहते है बसंत है इतना प्यारा
फिर ये पपीहे की कहाँ गयी बोली प्यारी
हर्षित होते मोर को ढूंढ रही राह-राह
सो गए  सारे लोग यहाँ
लगता है यहाँ सब खाली-खाली
मानव देख रहा डाली-डाली
                       
                  (२)
आम के पेड़ दिख रहे सूखे पत्तों संग खाली
हरे भरे बिन बौर लगती है ठूठी-ठूठी  
उपवन में दिखती है सूखी पत्तों की क्यारी
पंखुड़ियों की ओर भ्रमर चल पड़ा अदृश्य होकर
मानों असहज होकर छुपा रहा अपने तन न्यारी
पलाश खड़े मात्र स्तम्भ बनकर
अनुभव करा रहे हमें अपनी सुकुमारी
हे प्रियतम, मधु के छत्ते वाली मौसम का बसंत है कहाँ  
क्या मधुमक्खी पी कर सो गयी सारी मधु की प्याली
बन जाओ तुम भी साकी
दिखा दो मुझे प्यारी हरियाली
मानव देख रहा डाली-डाली  
                     
                   (३)
नभ की ओर देख रहा अचरज भरा मन
काले-काले मेघ ले चले सुन्दर ओसों की बौछारी
बुलबुल गाती थी तराना
अदृश्य देख कर अब हो गयी हैरानी
सुन्दर तितलियों का झुण्ड जा रही कहाँ 
दूर तलक घास में छिप कर कुछ हैं कहने वाली
प्रेयसी, मानों बसंत चला भी गया मान लो इनकी वाली
नदियों की कल कल की आवाज
और सुन्दर पक्षियों की वाणी
मानों अनुभव करा रहे ये हुयी स्मर कथा पुरानी
स्याह कलम तैयार है भरने को रंगीली डाली  
मानव देख रहा डाली-डाली  
                                                                
                                                                -प्रभात