Saturday 24 January 2015

दादी जी को समर्पित!

        दादी जी को समर्पित

मैं स्वयं दादी जी के साथ 
बहुत कुछ अच्छा सिखाया आपने। 
न पढ़ कर भी हमें पढ़ाया आपने। 

डूबकर कितना लिखू आपके याद में।
कभी रुलाया तो कभी हंसाया आपने।
कहानियाँ बहुत सी सुनाया आपने।
संस्कृति को करीब से दिखाया आपने।
त्योहारों के अर्थ को बताया आपने।
पूछता हूँ अब बचपन की यादों को आपसे,
जवाब होता है स्मृति भुलाया आपने।

दादी जी
बचपन भर तमंचा* बना कर हंसाया आपने।
न जाने कितनी बातों को दुहराना आपने।
कुछ कहना और सुनना सिखाया आपने।
कुछ बताना और पूछना सिखाया आपने।
हौंसलों को हमारे कितना बढ़ाया आपने।
 कुछ और बताना और पूछना हो अब कैसे,
आप कहती है स्मृति भुलाया आपने।


*यहाँ तमंचा मूजा(पौधे) के सींक का बना हुआ छोटा सा खिलौना है, जिससे सूप(पछोरने अर्थात अनाज को फटकने में प्रयोग) की बुनाई भी की जाती है
                                                                                  
                                                                         - प्रभात  

Friday 23 January 2015

गरीब की आवाज

     आज नेताजी सुभाष चन्द्र बोस की जयन्ती है  ऐसे महान भारतीय स्वतंत्रता संग्राम सेनानी को मेरा शत-शत नमनमुझे अफसोस है की नेताजी की मृत्यु आज तक रहस्यमय बनी हुयी है! क्षमा करना नेताजी मुझे! मैं इस लायक नहीं हूँ कि आज आपके बारे में फैलायी अफवाहों के बारे में कुछ कह सकूँ!
      मैं जन्मदिन के इस विशेष शुभअवसर पर आज के नेता जीको यह अनुभव कराना चाहता हूँ कि वह भी एक नेताजी थे जिन्होंने कहा था कि तुम मुझे खून दो मैं तुम्हे आजादी दूंगाऔर आज के नेता जी जिनके पास सब कुछ  है अर्थात स्वतन्त्रता होते हुए भी वोट लेने के बाद सब कुछ भूल जाते है कुछ करते हैं भी तो जमीनी हकीकत से ऊपर उठकर लीजिये प्रस्तुत है, मेरा एक छोटा सा सन्देश “आज के नेता जी” के नाम:     

     गरीब (गरीब जो असहाय होता है उसकी पीड़ा को एक कवि/लेखक केवल लिखकर आवाज उठा सकता है पर वास्तविक पीड़ा उसी से पूछिए किसी ने सही ही कहा था कि “भारत की आत्मा गाँव में निवास करती है” और गाँव में गरीब ज्यादातर गरीब जनता निवास करती है शहर में तो जगह ही नहीं मिलती) क्या कहे:-

गरीब की भूख का इंतजाम कर दीजिये
पांच साल तक राजनीति में रह लीजिये
कहता हूँ मैं नहीं केवल, मेरा परिवार कह रहा है
दस वोट का मुझसे इंतजाम कर लीजिये     
हाल है ऐसा जहाँ गरीबी की रेखा भी नहीं जाती
राशन है ऐसा जो गाय के मुंह में भी नहीं जाती
श्रम की ताकत नहीं जो अब परिवार का पेट भरे
मेरे कुछ बच्चों की ही रोटी का जुगाड़ करे
एक है सोता जब दूसरा है रोता
ऐसे भूखे पेट के लिए कुछ दान कीजिये
पांच साल तक राजनीति में रह लीजिये


नेता जी क्या कहते है कैसे अलग है नेता जी से गरीब की अपेक्षाएं:-

इस देश में गरीबी को देख कर हैरान हो जाता हूँ
भाईओं और बहनों! इससे मैं परेशान हो जाता हूँ
इस बार वोट दीजिए हर घर में खुशहाली ला दूंगा
२०२२ तक झुग्गी की जगह नया आवास दे दूंगा
स्वच्छता का नारा देकर गंगा को स्वच्छ कर दूंगा
और बिजनेसमेन के बिजनेस का जुगाड़ कर दूंगा
बिजली जहाँ है वह २४ घंटे बिजली आयेगी
जहाँ नहीं वहा नयी लालटेन जल जायेगी


और फिर गरीब की आवाज क्या होती है:-

गरीब की भूख को नेता जी आप क्या जाने
आज लगी है भूख तो २०२० तक की क्या माने
रोटी का जुगाड़ नहीं तो भीख क्या मांगे
मुझे स्वच्छ करने की राजनीति को आप क्या जाने
गरीब के नाम का राजनीति में इस्तेमाल बंद करो
इस पर सरेआम हो रहे अत्याचार को बंद करो
स्वच्छता करना है पहले तो मूत्रालय का इंतजाम तो करो
पहले अपने आस पास की झुग्गियों का नाम करो
राजनीति में दान की जगह कूड़ेदान पर कार्य करो
जनता से निकले हो जनता के लिए काम करो
बिजनेसमेन और हसीनों को अपने घर वापसी करो
कुछ अच्छा करना है तो करो ये है जनता की पुकार
नहीं तो है गद्दी पर किसी और का इंतजार
२०२२ तो दूर पहले ही लोकतंत्र जग जायेगा
मान-सम्मान लेकर मानवता का पंछी ऊपर उड़ जायेगा
                                                               -प्रभात 

Thursday 22 January 2015

गाँव अपने जब भी जाऊं।

मैं पथिक बनकर रहा,
गाँव अपने जब भी जाऊं 
निहारता हुआ खेतों की ओर,
दूर तलक पहुँच जाऊं
बचपन की यादों में,
निहारते हुये खो जाऊं
ट्रेन की खिड़की खुली हो जब,
आसमां तक घूम आऊं
सब कुछ बदलते देख मैं,
घर का लालटेन भूल न पाऊं
पहुंचकर घर अजीब लगता है,
फूस के छप्पर देख न पाऊं
घर के लोगों को देखकर,
बूढ़े जवान में फर्क न कर पाऊं
पीले सरसों और मटर के खेत में,
जाकर फिर छिप जाऊं
गन्ने की खेतो को देखकर लगे,
कभी गुड़ के लड्डू खा जाऊं
आगे चने के तने दिखे,
अकेले अब तोड़ न पाऊं
तालाब दिखी पटी हुयी मगर,
लगा मिट्टी के खिलौने बना जाऊं
सवाल बचपन और समय का है,
थोड़ा मुसकराऊं मगर हल ढूंढ न पाऊँ  
                                   -"प्रभात"   

Thursday 15 January 2015

मनभावन मृदुल सी आपकी भाषा हो ।

   कल्पना करना आसान नहीं होता । बस में भोर में बैठे हुये गाँव की ओर जा रहा था । बस के आस पास बस रास्तों के साथ पेड़-पौधे यात्रा पर थे । सुबह 5 बजे केवल आगे डिग्गी की और बैठकर रास्तों को निहार रहा था । सुन्दर पीले-पीले सरसों के पौध खेतों में सजे मानों मुझे बचपन की तरह छुपने के लिए बुला रहे थे । गन्ने के खेत को देखकर मेरे दांत ठंडक से जो किट किटा रहे थे वो अब शांत हो गए थे । ओंस की बूंदों से सजी पत्तिया यह कह रही थी की मेरी तरफ देखते रहो । श्रृंगार की अनुपम छठा मानों कुछ पन्नों में कैद करने की ओर इशारा कर रही थी परन्तु कलम की कमी से मुझे अपने निगाहों से ही संतोष करना पड़ा ।    


मनभावन मृदुल सी आपकी भाषा हो
प्रिय, हर बातों में अपनापन आता हो

हल्की सी मुस्कान बिखेरकर लबो पर,  
कोयल से भी मीठा संगीत आता हो

सुन्दरता देख फूल झुके आपकी ओर,
बिन गहने, परी सा लगना आता हो

खुशियाँ जितनी हो जीवन में हमारी,
प्रिय, बातों में बस छुपी हुयी आशा हो

कभी अर्थपूर्ण लगे बातों की कहानी,
तो हृदयस्पर्शी बात बनाना आता हो

ख्वाहिश जैसे पूरी होती रहे हमारी,
यादों पर सुन्दर राग बनाना आता हो

बदलते मौसम से बात करूँ जब-जब,
प्रिय, मौसमी प्यार दिखाने आता हो 

                                                -"प्रभात"

Monday 5 January 2015

ये धुंध छटा कोहरे का, पर मन में उदासी है।

क्या मन था आसमान में
उड़ने का और उड़ाने का
हौसले सिमट रहे थे अब
तुम आते तो हो पर लगता है
करवटें यादों में काफी है
ये धुंध छटा कोहरे का पर मन में उदासी है
रात दिखी अँधेरे में, सुबह को खो जाती है

धूप दिखाई तुमने मेरे आँगन में
बगिया महकायी मेरे ख्वाबों की
कितने फूल सजाये अब
हवा सवाँरे मेरे जुल्फों को
बस रंगीन हवाएं काफी हैं
ये धुंध छटा कोहरे का, पर मन में उदासी है
रात दिखी अँधेरे में, सुबह को खो जाती है

पर्वत तक जाकर लौट आता
सफेद बर्फ से घिर जाता में
अपनी बाहों को फैलाता
मेघों को पास बुलाता अब
लगता है सर्द रातें ही काफी हैं
ये धुंध छटा कोहरे का, पर मन में उदासी है
रात दिखी अँधेरे में, सुबह को खो जाती है

बेहिसाब रहा ये कोहरे की कहानी
किसी ने कही और सुनी मैंने
बंद थी आँखे मैं था अनुभवहीन
चाहा था कुछ पर अधूरा है अब
ऐसे ही ये वर्ष बिताना काफी है  
ये धुंध छटा कोहरे का, पर मन में उदासी है
रात दिखी अँधेरे में, सुबह को खो जाती है
                                          -“प्रभात”