Thursday 28 August 2014

मैं नर और न ही नारी हूँ....

कभी पायल पहनती तो कभी होठो को रंगती

और कभी दुपट्टा तो कभी साड़ी में दिखती  

मैं नर और न ही नारी हूँ

बस मैं यहाँ बेचारी हूँ 

सोचती हूँ मैं प्यार में डूबूं

मीरा बनूँ या कृष्ण

उनको देखूं या न देखूं,

पर मुझको कैसे प्रेम दिखाते है वे

थोड़ा शर्माती कुछ कहने को होती 

पर वे देखते है ऐसे जैसे,

मैं लाचारी हूँ, हाँ हूँ पर धीरज न खोती

बस अलग पहचान संजोती 

खूंटी में बैग टांगती और सिक्को को गिनती

मैं रेलों के डिब्बे में घुसती और गालियाँ देती 

मैं खुद भिखारी हूँ 

मैं समाज की मैली दुखवारी हूँ 

चलना मेरा पहचान है ताली दूसरी

मैं अच्छी लगती हूँ हाय कितनी

बहुत समझती हूँ 

आजाद हुआ था हिन्दुस्तान जब

तब कहाँ थी, पहचान बनाने में ही तो

जो अब कानूनी दस्तावेज़ में लिखा हैं

नया लिंग है मेरा अभी 

मैं अभी जान पाई हूँ 

मैं जानती हूँ केवल लिखना हो मैं खुद ही लिख लेती

सम्मान चाहिए मुझको अपने अस्तित्व का

कब तक मांगूंगी भीख केवल साथ चीख

यह जानते हुए कि औरत/मर्द का भेद ही यही होती 

मैं छुपती हूँ या चुप रहती हूँ 

पर यहाँ बेचारी-बेचारी,

मैं तिकोनी आँखों में देखी जाती हूँ...

                                   -“प्रभात”



Tuesday 26 August 2014

न जाने क्यूँ कुछ लोग ही पूछते है मेरा हाल चाल...

न जाने क्यूँ कुछ लोग ही पूछते है मेरा हाल चाल


मेरे प्यारे-प्यारे दोस्तों,
       मेरा घर बहुत दूर है. मुझे घर पहुंचना है. रेलगाड़ी चल दी है आप सभी मेरा बहुत ख्याल रखते है इसलिए मैंने आप सबको पहले ही बता दिया है कि घर पहुँच के आप को जरूर बता दूंगा कि सकुशल पहुँच गया हूँ. मेरे पास बैलेंस नहीं है और रोमिंग में हूँ परन्तु आप सभी मुझे ट्रेन चलने के कुछ देर बाद ही कॉल कर रहे है और ये जानना चाहते है कि घर पहुंचा या नहीं. परिस्थिति को समझने की कोशिश कीजिये और अगर घर नहीं भी पहुंचूंगा तो इतना तो जरुर है कहीं न कहीं पहुंचूंगा ही आखिर ट्रेन जो चल दी है और आखिर मनुष्य तो हैं  ही.
      यह काल्पनिक कहानी है या कुछ विशेष बात जो मैं या तो समझ सकता हूँ या कुछ प्यारे दोस्त ही. दोस्तों समय का कुछ ख्याल रखे....लीजिये आप लोगों को ही ये पंक्तिया समर्पित करता हूँ..


"न जाने क्यूँ कुछ लोग ही पूछते है मेरा हाल चाल
कुछ खुशी में और कुछ गम में,
मेरे खुशी में कुछ गम मनाते है
और मेरे गम में खुशी मनाते है
अगर पूछे भी सही तो इनकी जरुरत ही क्या है
स्वागत है हर बार उनका जो केवल
मेरी खुशी के लिए हर वो काम करते है
जिन्हें देखकर भूल जाता हूँ सारा गम और खुशी
और न जाने क्यूँ कुछ लोग ही समझते है मेरी बात
इसका जवाब आप ही दें तो अच्छा है.................. "
                                                                                                                                                                                 -"प्रभात"

Thursday 14 August 2014

भारत का गुणगान करें!

आओ भारत का गुणगान करें
तिरंगे का सम्मान करें
गरीबी को हम मिटा देंगे
जन-जन यह सन्देश पहुंचा देंगे
भारत माता की भूमि पर कोई भूखा न सोये
हर बच्चा-बच्चा भारत रक्षा में तन-मन से लीन रहे
गाँव-गाँव के कोने में गंगा पहुंचा देंगे
तिरंगे को फहरा देंगे
गाँधी के सपनों से भारत का निर्माण करें
आओ आजादी का विस्तार करें
भारत का गुणगान करें.

भगत सिंह जब माँ को देख कर हँसते थे
राजगुरु, सुखदेव से आँखों में बाते करते थे
हिम्मत लेकर आंखिरी सांस तक लड़ते थे
ऐसे वीरों की माँ को याद करें
ऐसे भारत माता के बच्चों का निर्माण करें
भारत का गुणगान करें.

कहाँ पर भ्रष्टाचार नही है कहाँ पर नही है घोटाला
कहाँ पर धर्म से नही है नाता संप्रदाय के ताकतों से
आतंकवाद का कहर यहाँ है जहाँ मिली है आजादी
युवा जनसँख्या का जवाब यहाँ है जनसंख्या के बढ़ने का
हमें चाहिए आत्मनिर्भरता खुद का ज्ञान बढाने में
आओ मिलकर हम अपनी आवाज बुलंद करें
आजाद के आजादी के सपनों का और विस्तार करें
कन्याकुमारी से जम्मू-कश्मीर तक भारत का नाम करें
आओ भारत का गुणगान करें. 
                                      
                                 -"प्रभात"     

Wednesday 13 August 2014

बस यूँ ही!


कभी-कभी मैं बिखरा-बिखरा सा होता हूँ
किसी सवाल के जवाब में सहमा-सहमा सा होता हूँ
किनारों पर पहुँचने में देर न लग जाये
इन बातों से ही थोड़ा बदला-बदला सा होता हूँ.

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कहीं जमीन मिलती है तो, किसी और को शामिल क्यों न करूँ
किसी का इंतजार व्यर्थ है तो, अपने आप को खाली क्यों न करूँ
बिन जाने कब वो आएगा, कुछ हासिल होने की बात आपसे कैसे करूँ
अगर जमाना ही न बदले तो बदले ज़माने की बात कैसे करूँ
अरमान लेकर निकले है कुछ सपनों के दिए जलाकर
गम खत्म हो जाये इससे तो, बहकी-बहकी बातें खुद से क्यों न करूँ.

                                    -"प्रभात"

-प्रभात 

Friday 1 August 2014

रिश्तों की बुनियाद पुरानी हो न हो!

रिश्तों की बुनियाद पुरानी हो न हो
यादों की बुनियाद डालनी इनसे सीखो

महफिल में अपना कोई हो न हो
बातों से अपना बनाना इनसे सीखो

फूलों का गुलदस्ता हाथों में हो न हो
प्यार जताना इनसे सीखो

######सर कहाँ है?  आ जाइए डेरे पे हैं।  प्रसिद्ध डेरा ५३ (एस) ग्वायर हाल, दिल्ली विश्वविद्यालय, दिल्ली का हुआ करता था.
सर अभी नहीं आ पाएंगे थोड़ी समस्या है.
कहिये क्या हुआ.. यही साथे में लंच कर लीजियेगा
अरे नहीं जाम लग गया है. बस में हूँ टाईम लग जाएगा
सो बात तो है! कोई बात नहीं रखवा देता हूँ
नहीं सर। … क्या नहीं कुछ दिन ही तो बचे हैं फिर तो हम परदेशी हो जायेंगे
अच्छा सर आते हैं शाम तक
आईये-आईये वेलकम!……………………।
इन यादों की पुरानी डायरी भले ही मैं फिर से पढ़ लूँ पर यहाँ मिलने वाला हर कोई यह पढ़ कर शायद समझ जाए कि मैं किस जनाब की बात कर रहा हूँ..... श्री राम एकवाल सिंह (असोसिएट प्रोफेसर) की जो हमारे देश से मधुर सम्बन्ध रखने वाले नेपाल देश से ताल्लुक रखते हैं......
आईये हम कुछ फोटो पर भी नजर डाल लेते हैं.......