Tuesday 11 September 2012

और तब तक इतिहास का एक विचित्र अध्याय ख़त्म हो जाता है शायद ही कभी कोई इसे पढ़े और इसका जिक्र करे !

 """""रागिनी क्या तुम्हे पता है मैंने अपने एक महीने के दिन को वनबास के रूप में क्यों समर्पित किया था .....क्योंकि मुझे देखना था की यहाँ लोगों की मानसिकता कैसी है ,,,,एक ऐसे समय से गुजरना किन-किन विचारधारों में परिवर्तित होती है और इन्ही सब बातों से हमें कैसे/ किस प्रकार की सीख लेनी चाहिए.....कहते है यहाँ लोगों के पास बल है पर कैसे इसका प्रयोग करें
नहीं पता
यहाँ लोगों के पास अच्छे पैसे है, पर इन पैसों का सदुपयोग किस उचित कार्य में करें
नहीं पता
लोग बहुत अच्छी पोस्ट पर है लेकिन बात कैसे करें
नहीं पता
अपनी गरिमा का ध्यान नहीं अपना खुद का सम्मान नहीं दूसरों का कैसे करें
पता नहीं

फिर क्या पता है इस देश और इसके समाज के बारे में जहाँ हर तरफ से विभिन्नता है वहां सिर्फ जगह/जन्म स्थान को लेकर बंटवारा कैसा?? 
अगर मुझे कुछ नहीं पसंद है तो क्या करूँ??? सिर्फ पैसे, उसके लिए मिलने वाले सम्मान और सम्बन्ध को लेकर मैं अपने जिन्दगी के लिए सजाये गए सपनों को सिर्फ सपनों में ही पड़े रहने दूं......

रागिनी अब तो तुम मुझे जानती ही हो कि मेरे ऊपर माता-पिता के सादगी जीवन और उनके सभी उत्तम विचारों का इतना प्रभाव है और रहता आया है जो मुझे शायद ही कहीं किसी भगवान की चौबीस घंटे पूजा करने/ तपस्या  से मिल सके........
तो मुझे क्या करना चाहिए और मैं क्या कर सकता हूँ तो कोई और नहीं मुझे ही निर्धारित करना होगा.....

प्रभात तुम तो कभी कुछ और ही कह रहे थे आज कुछ कहते हो " रागिनी थोड़ा सोंच के""

आखिर बात क्या है.......मिलना तब ज़रूर बताऊंगा..!!!! और तब तक ऐसे इतिहास का एक विचित्र अध्याय ख़त्म हो जाता है शायद ही कभी कोई इसे  पढ़े और इसका जिक्र करे ! ..............######""""""

Friday 7 September 2012

इस बार तो उसने मुझे काल्पनिक जीवन की बजाय वास्तविक जीवन में होने का आभास कराया


रागिनी एक बार मुझसे मिलने आयी थी, इस बार तो उसने मुझे काल्पनिक जीवन की बजाय वास्तविक जीवन में होने का आभास कराया......उसने कहा तो कुछ नहीं पर मैंने जितना उसके न कहने पर समझ लिया उतना शायद ही किसी और के कहने पर समझ पाता....घबरायी हुई सी थी और  अचानक गायब हो गयी जैसे चाँद बादलों में अचानक छुप सा जाता है,
मुझसे कहने आयी थी कि "" जब तुम्हारे आने से उजाला  हो सकता  है तो तुम्हारे जाने से अंधकार तो होगा  ही.... परन्तु अगर उससे पहले मैं चली गयी तो मेरे लिए उस अंधकार  का क्या मतलब ???""
सच  में रागिनी के होने का आभास मुझे ऐसे समय पर ही लगा जब वह चली गयी, वह इतनी सुन्दर और कोमल थी जितनी कोई वाटिका में लगे पेड़ों  के फूल भी न हो सकें, बातों में इतनी मधुरता थी जितनी कोयल कि मीठी आवाज में  भी न हो सके........

रागिनी को मै बस यूँ ही अब सपनों में देखता रहता हूँ और मेरे वास्तविकता के साहित्य कि झलक आप तक पहुँचती रहती है...............

Saturday 1 September 2012

यादें!


एक पत्थर नहीं हज़ार है ,किसे पूजना है किसको देखना है ,
इन यादों की तो भरमार है , किसे याद है किसको पाना  है ,
क्यूँ एक मोती की तलाश है, जिसे लाना है और रखना है ,
ऐसे सवालों का कितना जवाब है , जिसे बताना है और अपनाना है



"प्रभात "

उसने मुझे एक अलग सा अपनत्व दिया और बिल्कुल अपने जैसा होने का बोध!


जब मुझे रागिनी दिखती है, तो काल्पनिक कथा, काल्पनिकता के एक साहित्य में निखरती हुई प्रतीत होती है वह बिल्कुल अलग थी, उसने मुझे एक अलग सा अपनत्व दिया और बिल्कुल अपने जैसा होने का बोध!

आज सुबह हो रही है, रागिनी आयी थी परन्तु वह थोड़ा पहले भोर हुए ही नहीं; तभी गयी ......बस मै १२ घंटे भी इंतजार  कर सका और अँधेरी शाम होने को होती  है मै छुप सा गया एक कोने में यह कह के कि कल ज़रूर मिलना,,,,,,,,,,,राहें उसके इंतजार में सकरी होती मालूम हो रही थी परन्तु वह तो अगले सुबह मिलने वाली थी चन्द्र देव के दर्शन हो गए अब तो एक ही दर्शन होना बाकी था वह प्रभात-रागिनी का !.........सूर्य ने अपनी पलकें खोली और फिर क्या था किरणों की अपरम्पार महिमा;;;;;;;अब मुझे रागिनी का इंतजार था परन्तु आसमान में तभी घड़े से पानी गिरता नजर आया पता लगा अब तो रागिनी कही दूर एक ऐसी जगह चली गयी होगी जहाँ मै तो होऊंगा पर वह मुझे कब दिखेगी  पता नहीं क्योंकि तब तक रागिनी मेरे बिना रहना सीख जाती है,,,, मै इसी सोंच में हर दिन  सूर्य होते ही दिखता हूँ कि शायद वह मेरे रोज आने की दिनचर्या से कभी तो वाकिफ होगी !!!!


Prabhat